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________________ न्यायसागर २८५ निगोद विचार गभित महावीर स्तवन की अंतिम पंक्तियाँ :-- हवे प्रभु तु मुझने मिल्यो, सिद्धां सविकाज; न्यायसागर प्रभु ने कहे, धन दिन मुझ आज । महावीर (जिन स्तवन) रागमाला सं० १७८४ धनतेरस, रानेर । यह गेय रचना भिन्न-भिन्न ३६ राग रागिनियों में पूर्ण की गई है जिससे कवि के संगीत ज्ञान का परिचय मिलता है। प्रारम्भ राग रामकली में किया गया है, यथा--- प्रह ऊठी पहली समरीजइ, नमस्कार सुखकंदो, चउद सुपन राणी निशि देखइ, आया कूखि जिणंदो । रचनाकाल एवं स्थान-- रहि रानेर नयर चोमासुं, जिहां जिन भवन विशाल, वेद वसु मुनि विधु मितवर्षेहर्षे ओ रंगमाल । धनतेरसि दिनि पूरण कीधी, छत्रीस राग रसाल । इसके कलश की पंक्तियों में गेयता और लय दर्शनीय है-- जय जगत लोचन तम विमोचन महावीर जिनेसरो, म्हें थुण्यो आगइ भक्ति रागई जागतइं जग अघहरो । तपगच्छ मंडन दुरित खंडन उत्तमसागर बुधवरो, तस सीस भासइ पुण्य आसय न्यायसागर जयकरो। हम देखते हैं कि इनकी ये सभी रचनायें २४वें तीर्थङ्कर महावीर के स्तवन के रूप में लिखी गई है जिन पर भक्ति भावना का गहरा प्रभाव है । इन स्तवनों के अलावा भक्ति पूर्ण दो चौबीसियाँ लिखी हैं जिनमें चौबीसों तीर्थङ्करों की वंदना होती है। ये दोनों चौबीसियो चौबीसी बीसी संग्रह पृ. १४४-१७१ पर तथा ११५१ स्तवन मंजुषा में प्रकाशित है। प्रथम चौबीसी की अंतिम पंक्तियाँ दी जा रही है-- निरखी साहिब की सूरति, लोचन केरे लटके हो राज, प्यारा लागो । उत्तम शीशे न्याय जगीशे, गुण गाया रंग रटके हो राज, प्यारा लागो । २, श्री देसाई-भाग ५, पृ० २६०-२६२ (न०सं०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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