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________________ मदास श्रावक इस छन्द में अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग द्रष्टव्य है । कवि हीरविजय के बारे में कहता है- साह अकबर के प्रतिबोधक, कीया सुगता विहार तस शिष्य आनंद विजय बुध गिरुआ मेरुविजय बुधसार । इनकी भाषा में प्रवाह के साथ है । एक उदाहरण प्रस्तुत है- श्री लावण्यविजय सुगुरु उवझाया, वाचक लषिमी साधार, कविकुल कोटीर धीर महाकवि, जिन आगम सहचार | तिलक विजय बुध बुधजन सेवित, भूरमणी उरहार, तास चरण रज रेणु सेवाकर, नेमि विजय जयकार | शब्दालंकारों की अच्छी योजना यह रचना दौलतचन्द के आग्रह पर कवि ने की थी, यथाअ दानचन्द्र शिष्य दोलति चन्द्र ने कथने कीयो अधिकार, पंडित वांची ने सुद्ध करयो, भविक जीव हितकार ।" २८३ - जैन गुर्जर कवियो के प्रथम संस्करण में इस कवि के नाम पर जो बीसी बताई गई थी वह ज्ञानविजय के शिष्य नयविजय की रचना होने के कारण नवीन संस्करण में छोड़ दी गई है । सुमित्ररास में रचना-स्थान नडिपाद बताया गया था किन्तु पाठान्तर्गत शब्द 'मडियाद' आया है । इसके स्पष्टीकरण की अपेक्षा है । यहाँ मड़ियाद ही दिया गया है । Jain Education International न्यायसागर -- ये तपागच्छीय धर्मसागर उपाध्याय की शिष्य परम्परा में विमलसागर > पद्मसागर > उत्तमसागर के शिष्य थे । आपका जन्म भिन्नमाल (मारवाड़) निवासी ओसवाल मोटो साह की पत्नी रूपा की कुक्षि से सं० १७२८ श्रावण शुक्ल अष्टमी को हुआ था । आपके बचपन का नाम नेमिदास था, आपको दीक्षा उत्तमसागर ने दी । आप प्रसिद्ध सन्त विद्वान् एवं साहित्यकार थे । आपने दिगम्बर १. मोहनलाल दलीचंद देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ४४९-५४, भाग ३, पृ० १३९६ - १४०० ( प्र०सं० ) और भाग ५, पृ० ११६-१२४ ( न०सं०) 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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