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________________ ૨૮૨ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास का माहात्म्य प्रतिपादित किया गया है। इसकी अंतिम पंक्तियां देखिए-- गाम श्री भनडीयाद ज मांहे वोरा नाथा ना उपदेसे जी, वलि निज आतम ने उपदेशे, परम प्रबंध विशेषे जी। भणे गणे जे अहि ज रासो, ते घर मंगलमाला जी, जन्म पवित्र होवे श्रवणे सुणतां, अति घणि लक्षि विसाला जी।' धर्मबुद्धि पापबुद्धि रास अथवा कामघट रास (सं० १७६० आषाढ कृष्ण सप्तमी) इसमें धर्म की महत्ता बताई गई है। धर्मबद्धि मन्त्री था और पापबुद्धि उसका राजा। अधिकतर जैन काव्यों में कथानायक या प्रधान पात्र राजा नहीं बल्कि उनके मन्त्री हैं जो धर्मात्मा तथा बुद्धिमान भी हैं, और वणिक होते हुए भी आवश्यकता पडने पर शौर्य भी प्रदर्शित करते हैं। इस रास में नेमिविजय ने तपागच्छ की परम्परा सोहम स्वामी से प्रारम्भ करके अकबरबोधक हीरविजय सूरि से होकर तिलकविजय तक गिनाई है और बताया है कि इस रचना का आधार आनन्दसुन्दर कृत ग्रन्थ है। रचनाकाल इन पंक्तियो में है-- संवत सतर अडसट्ठा वरणे, सातीम कृष्ण आसाढ़ि रे, नेमिबिजै बह लह्यो सम्पद, परमानन्द पद गाढ़ि रे। श्री विजयरत्न सूरीसर राजियं, रास रच्यो सुखकारि रे, जिहां लगि सशि सूरज थिर वक्ता श्रोता सुखकारि रे ।' तेजसार राजर्षि रास भी काफी बड़ी रचना है यह ३९ ढाल १९५८ कड़ी में पूर्ण हुई है। इसका रचनाकाल सं० १७८७ कार्तिक कृष्ण १३ गुरुवार है, यथा--- संवत संयम माता प्रवचन सुनयचित्त अवधारी, काती मास सुवास कृष्ण योगे तेरसि ने गुरुवार । प्रारम्भ--परम परमेश्वर परम प्रभु, पास परम सुखकार, परम लीलाकर परम जय, भय भंजन भवतार । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० १२१ (न०सं०)। २. वही, पृ० १२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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