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________________ नेमिचन्द्र २७२ कि ये रचनायें कब की हैं। गोम्मटसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार के कर्ता नेमिचंद का भी ब्यौरा नहीं उपलब्ध है और ये रचनायें भी मरुगुर्जर (हिन्दी) की नहीं है अतः इनके लिए विस्तार में जाने की अपेक्षा भी नहीं है। १८वीं शती के जिस नेमिचंद्र का उल्लेख किया गया है वे देवेन्द्रकीति के शिष्य नेमिचंद्र ही हैं जिन्होंने हरिवंशपुराण या नेमीश्वर रास लिखा है। नेमिदास श्रावक-आप दशा श्रीमाली कुलोत्पन्न श्री रामजी साह के सुपुत्र थे, और ज्ञानविमल सूरि के शिष्य थे। आपने अध्यात्म सारमाला की रचना सं० १७६५ वैशाख तृतीया को पूर्ण की। ग्रंथ के अन्त में कवि ने अपने कूल और ग्रंथ के रचना-समय का विवरण निम्न पंक्तियों में दिया है-- सवि भविजन अ ध्यान, पामिने नृभव सुधारो, ज्ञानविमल गुरु वयण, चित्त माँहे अवधारो। श्री श्रीमाली वंश रत्न सम रामजी नंदन, नेमिदास कहे वाणि ललित शीतल जिम चंदन । रचनाकाल-- सर रस मुनि विधु वरस तो, मास माधव तृतीया दिने, ओ अध्यात्म सार में भण्यो, भाव करी सुभ मने । यह रचना बुद्धिप्रभा मासिक सं० १९७२ में प्रकाशित हुई है। आपकी दूसरी प्राप्त रचना है 'ध्यानमाला अथवा अनुभव लीला' (सं. १७६६), इसकी अंतिम पंक्तियाँ निम्नांकित हैं-- इम ध्यानमाला गुण विशाला भविक जन कंठे ठवो, जिम सहज समता सरलता नो सुख अनुपम भोगवो, संवत रस ऋतु मुनि शशि मित भास उज्ज्वल पाखे, पंचमी दिवसे थितं लहो लीला जेम सुखे । श्री ज्ञानविमल गुरु कृपा सही, तस वचन आधारी, ध्यानमाला इम रची, नेमिदास व्रतधारी ।' १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ४६७-४६८ और भाग ३, पृ० १४१३ (प्र०सं०) और भाग ५, पृ० २३१-३२ (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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