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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इन्होंने सं० १७६९ में हरिवंश पुराण की रचना की। नेमीश्वर रास ही हरिवंशपुराण है । उत्तमचंद कोठारी ने भी अपनी सूची में नेमिचंद कृत हरिवंश पुराण (सं० १७६९) का उल्लेख किया है। इसलिए ये दोनों नामधारी रचनायें एक ही हैं। इस ग्रंथ की प्रशस्ति में अपने दादागुरु भट्टारक जगत्कीर्ति की प्रशंसा में कवि ने लिखा है
भट्टारक सब ऊपरै जगतकीरती जगत जोति अपार तौ, कीरति चहं दिसि विस्तरी, पाँच आचार पालै सूभसारतौ। प्रमत्त मैं जीत नहीं, चहुं दिसि में ताकी आण तौ, खिमा खड्ग सो जीतिया, चोराणवे पटनायक भाण तौ।' इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है
सतरासे गुणत्तरै सुदि आसोज दसै रवि जाणि तौ । इसके २१ अधिकारों में हरिवंश की उत्पत्ति का वर्णन है। शेष में नेमि के पंचकल्याणकों की कथा है। इसमें टेक है 'रास भणौ श्री नेमि को।' काव्य पूर्णतया गेय है। भाषा ढढारी ब्रज है। रचना साहित्यिक स्तर की है और कवि के मौलिक चिन्तन शक्ति की परिचायिका है। एक उदाहरण देखिये---
दूध चल्यौ जब आंचला, जाणि कठोर कलस अपार तौ, आनंद के आंस झरै, आपस में पूछ सब सारतौ।
रासभणौ... .. डॉ० लालचंद जैन ने लिखा है कि इस कवि की अन्य किसी कृति का पता नहीं चला है किन्तु यही रचना उसकी कीर्ति के लिए पर्याप्त है। इस वाक्य का पूर्वाद्ध यद्यपि असत्य है क्योंकि उनकी कई अन्य रचनाओं का पता लग चुका है पर उत्तरार्द्ध शत प्रतिशत सही है क्योंकि एकमात्र यही रास उनकी कीर्ति का पर्याप्त आधार है। यह रास परंपरा का उत्तम ग्रन्थ है। इसमें नेमि को चरितनायक बनाया गया है।
१४-१५वीं शती में रचित द्रव्यसंग्रह एवं वृहद् द्रव्यसंग्रह नामक रचनाओं की जैन समाज में प्रसिद्धि है पर निश्चित नहीं हो सका है १. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल--राजस्थान के जैन संत, पृ० १७२ २. नेमिरास, पृ० १३०१ ३. डा० लालचन्द जैम-जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबंध, पु० ८०
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