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________________ २७६ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नाथूराम प्रेमी ने इसके सम्बन्ध में लिखा है कि इसमें ऐसी अनेक बातें हैं जिनका पता कर्नल टाड के राजस्थान में नहीं है। इस ग्रंथ में राजपूतों की इकतीस जातियों का इतिहास है। इसके पहले भाग में एक एक परगने का नामकरण और उसके राजा का वर्णन है। इसके अतिरिक्त उक्त परगनों की फसलों, जातियों, जागीरदारों के विवरण के साथ उसकी मालगजारी तथा उसकी नदियों और ताल तालाबों का भी वर्णन है। इसमें जोधपुर के राजाओं-राव सियाजी से लेकर जसवन्त सिंह तक का वर्णन किया गया है। मूता नेणसी ने यह ग्रंथ लिखकर जैन विद्वानों पर लगा यह आक्षेप मिटाया है कि ये लोग सार्वजनिक कार्यों की उपेक्षा करके मात्र व्यक्तिगत साधना और मुक्ति को महत्व देते हैं । यह 'ख्यात'' गद्य में लिखित प्रामाणिक इतिहास की पुस्तक है। नेमचन्द - आपकी रचना का नाम है, 'चौबीसी चौढालियु' । यह कार्तिक सं० १७७३ में लिखी गई। श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने इसका कर्ता नेमिदास को बताया था, जबकि रचना में ही कर्ता का नाम नेमचन्द मिलता है. यथा ... चौबीस जिणवर सहित गणधर समरतां जिण वंदीओ, भव जलधि तारण दुख निवारण गुण ज धारण वंदी। संवत सतरासय तिहत्तर मास कातक सुभकरी, श्री नेमचन्द गुण ऋषवारे थुने पाप नाखे पुरी । जैन गुर्जर कवियो के नवीन संस्करण में उसके सम्पादक श्री कोठारी ने कर्ता सम्बन्धी भूल सुधारकर रचनाकार का नाम नेमचन्द दिया है। नेमचन्द के सम्बन्ध में विशेष परिचय और उनकी गुरु परम्परा आदि का विवरण नहीं उपलब्ध हो सका। कवि के अनुप्रास प्रयोग और छन्द-लय प्रयोग क्षमता का अनुमान उपरोक्त कलश की चार पंक्तियों से हो जाता है। १. नाथूराम प्रेमी--हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, पृ० ६९ और कामता प्रसाद जैन ---- हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ० १६४-१६५ । २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ४६८ (प्र०सं०) ३. वही, भाग ५, पृ० २९० (न०सं०) www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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