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________________ निहालचन्द २७५ जहाँ शिखर समेत पर नाथ पारस प्रभु झाड़खण्डी महादेव चंगा, नन पचेट में दरस दूधनाथ का बड़ान्हाहेण है गंगासागर सुसंगा। देस उड़ीस के जगन्नाथ अरु बालवा कुंड केन्हात सुध होत चंगा । गजल बंगाला देस की, भाखी जती निहाल, मूरख के मन नां बसे, पंडित होत खुसाल । इसमें सारदा के साथ गणेश की वन्दना और सम्मेत शिखर तथा पार्श्वनाथ के साथ गंगासागर, जगन्नाथ और वैद्यनाथ महादेव की वंदना करके कवि ने उदार मनःस्थिति का परिचय दिया है। भाषा में खड़ी बोली का यह प्राचीन प्रयोग भी ऐतिहासिक महत्त्व का है। हिन्दी काव्य में गजल का प्रयोग उस समय अभिनव प्रयोग था। इन सब दष्टियों से विचार करने पर कवि निहालचन्द्र की मौलिक प्रतिभा का अनुमान लगता है। श्री देसाई ने भूल से इस गजल के कर्ता का नाम रूपचंद लिख दिया था किन्तु नवीन संस्करण जैन गुर्जर कवियो में सुधार कर कर्त्ता का सही नाम निहालचन्द्र दिया गया है।' कवि ने स्वयं लिखा है --- गजल बंगाला देस की भासी जती निहाल । तो शंका का कोई कारण नहीं है । काव्य में खड़ी बोली के प्रयोग की दष्टि से इस गजल का ऐतिहासिक महत्त्व है; और यह भी प्रमाणित होता है कि १८वीं सती तक खड़ी बोली का पद्यभाषा के रूप में प्रयोग बंगाल तक फैल चुका था। इस प्रयोग के प्रायः डेढ़ सौ वर्ष बाद अयोध्या प्रसाद खत्री ने पद्य में ... खड़ी बोली के प्रयोग का आंदोलन सन् १८८८ में 'खड़ी बोली का पद्य' प्रकाशित करके प्रारम्भ किया। नेणसो मूता-ओसवाल जाति के श्वेताम्बर जैन श्रावक थे। आप जोधपुर के महाराज यशवंत सिंह (बड़े) के दीवान थे। मारवाड़ी मिश्रित पुरानी हिन्दी भाषा में आपने राजस्थान का एक इतिहास 'मूता नेणसी की ख्यात' शीर्षक से लिखकर इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया है। सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ मुन्शी देवीप्रसाद ने इस ग्रन्थ की प्रशंसा की है और इसे इतिहास का प्रामाणिक ग्रंथ बताया है । यह ग्रन्थ सं० १७१६ से १७२२ के बीच लिखा गया था। १. श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० ३२१ तथा १०९८-९९ (प्र० सं०) और भाग ५, पृ० ३६०-३६२ (न० सं०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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