SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निहालचन्द २७३ निहालचन्द -- इनकी गुरु परम्परा में मतभेद है । श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई इन्हें पार्श्वचन्द्र गच्छ के विद्वान् साधु हर्षचन्द्र का शिष्य बताते हैं।' श्री अगरचंद नाहटा इन्हें हर्षचन्द्र का गुरुभाई बताते हैं । इनकी रचनाओं माणेक देवी रास और बंगलादेश की गजल का नाम भी 'परम्परा' में क्रमशः मालवदेवी रास और वंशज गजल लिखा है जो अशुद्ध है । लगता है ये छापेखाने की अशुद्धियाँ हैं । इसके अलावा नाहटा ने जीवदयारास, नवतत्वभाषा और बावनी भी इनकी रचनायें बताई हैं । जीवदयारास का रचनाकाल १७०६ और नवतत्व भाषा का रचनाकाल १८०५ लिखा है जो स्पष्टतया गलत मालूम पड़ता है। एक ही कवि की दो रचनाओं में एक शताब्दी का लम्बा अन्तराल अविश्वसनीय है । माणक देवी रास में कवि ने स्वयं को हरषचन्द का अनुज बताया है, यथा- पाशचंद गछ परगडा रे लाल, वाचक श्री हरषचंद रे, तास अनुज जस उच्चरे रे लाल, नाम मुनि निहालचन्द रे । रचनाकाल -- संवत सतरै अठाणवै रे लाल, पोष कृष्ण पंख सार रे, तिथि तेरस ओ जोड़ी ओ रे लाल, मकसूदाबाद मझार रे । अर्थात् यह रचना सं० १७९८ पौष कृष्ण १३ को मकसूदाबाद में पूर्ण हुई। यह रचना जैनराससंग्रह प्रथम भाग ग्रंथमाला) पृ० १४८ - १६० पर प्रकाशित है । ( भ्रातृचंद सूरि जीवदया रास का नाम श्री देसाई ने जीवविचार भाषा बताया है और इसका रचनाकाल सं० १८०६ बताया है । यह १८६ कड़ी की रचना सं० १८०६ चैत्र शुक्ल २, बुधवार को पूर्ण हुई । नवतत्व भाषा का रचनाकाल श्री देसाई ने १८०७ माघ शुक्ल ५, मकसूदाबाद बताया है । * ४ १. श्री देसाई - भाग ५, पृ० ३६० ( न०सं० ) २. अगरचन्द नाहटा -- परंपरा, पृ० ११२ ३. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० ३६० ( न ० सं ० ) ४. वही, १८ पृ० ३६० - ३६२ ( न० सं ० ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy