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________________ धर्मवर्द्धन धर्मसिंह महोपाध्याय ४५ आगम स्तव अथवा संज्झाय (गा० २८ सं० १७७३ जैसलमेर) और गौड़ी पार्श्वछंद अथवा अष्टभय निवारण छंद धर्मवर्धन ग्रन्थावली में प्रकाशित लघु कृतियाँ हैं। इनके अलावा ८४ आशातना स्तव (गा० १८ शिवराम), २४ जिननां २४ गीत, बामानंदन स्तव, पार्श्वनाथ स्तव, ऋषभगीत आदि अनेक स्तवन, स्तोत्र आदि भी उपलब्ध हैं जिनके उद्धरणों से प्रविष्टि का कलेवर बढ़ाना उचित नहीं है। आप १८वीं शती के समर्थ कवि और प्रभावक संत थे। आपने नाना छन्दों, ढालों और लयों में विपूल रचनाएं की हैं जो लोक शिक्षा एवं लोकरंजन की दृष्टि से श्रेष्ठ हैं। हमें यह भी ज्ञात होता है कि धर्मसिंह, धर्मवर्धन, ध्रमसी, धरमसी आदि नामों से तमाम रचनाओं के कर्ता कवि धर्मवद्धन अपने समय के महान विद्वान् और संस्कृत, हिन्दी, मरु-गुर्जर आदि भाषाओं के ज्ञाता एवं सक्षम रचनाकार थे। धरमसी नामक एक कवि की दो रचनायें ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में 'जिनसुख सूरि गीतम्' और 'जिनभक्तिसूरि गीतम्' शीर्षकों के अन्दर प्रकाशित हैं। जिनसुखसूरि को सं० १७६२ में जिनचन्द सूरि ने गच्छनायक का पद प्रदान किया था। जिनभक्ति सूरि सं० १७७९ में जिनसुखसूरि के पट्ट पर आसीन हुए थे। ये धरमसी इन्हीं के शिष्य होंगे और उनका रचनाकाल भी १८वीं शती का उत्तरार्ध रहा होगा। धर्मवर्द्धन का समय १८वीं शतीका पूर्वार्द्ध है और इन दोनों की गुरु परम्परा भिन्न है। अतः ये भिन्न कवि हैं। प्रथम गीत में जिनसुखसूरि की स्तुति हैयथा- प्रतपो एहु धणा जुग गच्छपति, श्री जिनसुख सूरिंदो जी, श्री धरमसी कहुं श्री संघनइ, सदा अधिक करो आणंदो जी। दूसरे गीत में जिनभक्तिसूरि की वंदना है, यथा --- जिनभक्ति जतीसर वंदौ, चढ़ती कला दीपति चंदौ रे, खरतरगच्छ नायक राजै, छत्रीस गुण करि छाजै रे। रचनाकाल-- संवत सतरे उगुण्यासी ज्येष्ठ वदि त्रीज पुण्य प्रकासी रे सहु सुजस रिणी संघ साध्या इम कहै धरमसी उपाध्या रे । १. देसाई, भाग २ पृ० ३३९-४६ तथा पृ० ५९४ और भाग ३ पृ० १३१२ १८ (प्र०सं०)। २. ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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