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________________ २६० मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास डंभक्किया चौपाई (सं० १७४४ विजयादसमी) शायद वैद्यक शास्त्र की पुस्तक है। धर्मवर्धन ग्रन्थावली में प्रकाशित है। अमर कुमार सुरसुंदरी नो रास (४ खंड ३९ ढाल ६३२ कड़ी सं० १७३६ श्रावण शुक्ल १५, बेनातटपुर) आदि- सासण जेहनो सविहिये, आज प्रतिक्ष प्रमाण, जगगुरु वीर जिणंद नै, प्रणमुं ऊलट आंण । यह शीलतरंगिणी पर आधारित शील के माहात्म्य को दर्शाने वाली रचना है। रचनाकाल इन पंक्तियों में है -- सील तरंगणी ग्रन्थनी साखै अ रास अति लाखै जी, धन जे सील रतनै राखै भगवंत इण पर भाख्यै जी। संवत सतरै वरस छत्रीसे श्रावण पूनिम दीसे जी, यह संबंध कह्यो सजगीस, सुणतां सहुमन हीसै जी।' इसमें भी विजयहर्ष को गुरु बताया है । प्रास्ताविक छप्पय बावनी छप्पय छंदों में रचित मरुगुर्जर की रचना है इसे धर्मवर्द्धन ने सं. १७५३ श्रावण शुक्ल १३ को बीकानेर में पूर्ण किया था। यह धर्मवर्धन ग्रन्थावली में प्रकाशित है। (वीर जिणंद) आलोयण स्तवन (४ ढाल सं० १७५४ फलौधी) आदि -- अ धन शासन वीर जिनवर तणो, जास परसाद उपगार थाये घणो, सूत्र सिद्धान्त गुरुमुख थकी सांभली, लहिय समकित अने किरति लहिये वली। यह रत्नसमुच्चय और धर्मवर्धन ग्रंथावली में प्रकाशित है। दशार्णभद्र चौपइ (ढाल ६, गाथा ९६, सं० १७५७, मेढ़ता) भी धर्मवर्धन ग्रन्थावली में प्रकाशित रचना है। चौबीसी (सं० १७७१ जैसलमेर) की भाषा प्रसादगुण संपन्न हिन्दी है और यह धर्मवर्धन ग्रन्थावली में प्रकाशित है। सवासो सीख कड़ी १३६, शीलरास (गाथा ६४ बीकानेर) धर्मवर्धन ग्रन्थावली में प्रकाशित छोटी रचनायें हैं। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग ४, पृ० २९३ (न० सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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