________________
मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का वृहद् इतिहास की चित्रकारी पर चूना पुतवा दिया था। इस काल में राजसंरक्षण का अभाव होने के कारण चित्रकला का व्यवसायीकरण हुआ और यह जनसामान्य तक पहुँच गई। यह परोक्ष लाभ था। मांगलिक उत्सवों और पों पर लोग घरों में नाना प्रकार के चित्र सजाने लगे। विवाह एवं अन्य संस्कारों और त्योहारों पर अल्पना, मेंहदी, चित्रकारी आदि सजाने लगे जिससे चित्रकला को लोकसंरक्षण प्राप्त हुआ और वह नवीन रूप में विकसित होने लगी।
संगीत -इसको शाहजहाँ ने संरक्षण दिया, वह स्वयं अच्छा गवैया था । मुहम्मदशाह रंगीले भी संगीत प्रेमी था। इसके दरबार में अदारंगसदारंग का बोलबाला था और उनकी ख्याल गायकी की धम थी। इसी समय शोरी के टप्पों का गायन भी प्रचलित हआ। दक्षिण के सुल्तान भी संगीतज्ञों का सम्मान करते थे और संरक्षण देते थे। संगीत हिन्दू जीवन का तो अविभाज्य अंग ही है। हमारे जीवन में हर मौके पर गीत और गवैयों की आवश्यकता पड़ती है। घरों में, मंदिरों में, महफिल-दरबारों में, खेत-खलिहानों में सब जगह संगीत बैठा हुआ है। इसलिए संगीत का प्रचार-प्रसार अवरुद्ध नहीं हुआ। इस युग के जैन संत कवियों ने भी भक्त कवियों के समान आध्यात्मिक रस से ओतप्रोत संगीत का सृजन किया। सभी धर्मों के संतों- चाहे वे हिन्दू संत हों या सूफी संत, फकीर, योगी, दरवेस या भिखारी हों-में संगीत का अच्छा प्रचलन था। दक्षिण के भक्तों से लेकर उत्तर के वैष्णव भक्तों को उनके पदों और गीतों के लिए सदैव स्मरण किया जायेगा। इसलिए संगीत की स्थिति वैसी निराशाजनक नहीं थी जैसी अन्य क्षेत्रों में हम पहले देख आये हैं । जैन कवियों ने अपने रासों; चौपाइयों और चरित काव्यों में भरपूर संगीत का प्रयोग किया है । उनमें नानाशास्त्रीय राग-रागिनियों के अलावा देसियों, ढालों, लोकगीतों शौर प्रचलित लोकधुनों का प्रयोग हुआ है। इनमें टेक का प्रयोग करके भी वे रचनाओं में गेयता उत्पन्न करते थे और छंद के अंत में हाँ, सुन रे, लाल आदि संबोधन लगाकर संगीतात्मकता को बढ़ाने का प्रयास करते थे। संगीत के सहारे ये धर्मप्रवण काव्य को शुष्क होने से बचाकर उसे जनजन के लिए ग्राह्य बनाने का उपक्रम करते थे। इसलिए जैन साधुसंतों, श्रावकों ने संगीत की सफलता में पूर्ण योगदान किया। उनके साहित्य का अध्ययन--जो आगे प्रस्तुत किया जा रहा है-इस कथन का प्रमाण है, जिसमें प्रयुक्त ढालों और देसियों का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org