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________________ गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास योगदान किया । इस प्रकार कुल मिलाकर अन्य धर्मो की तुलना में जैनधर्म की स्थिति इस शताब्दी में अच्छी ही थी । विविध कलाओं की स्थिति स्थापत्य पूर्व विवेचित पृष्ठभूमि पर तत्कालीन कलाओं की स्थिति पर जब हम दृष्टिपात करते हैं तो वहाँ भी विघटन और ह्रास का प्रभाव परिलक्षित होता है । औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता, अरसिकता, निरंतर युद्ध और अशांति तथा अर्थाभाव के कारण स्थापत्य का जो चरम उत्कर्ष शाहजहाँ के समय में था वह नहीं रहा । साम्राज्य ने संरक्षण नहीं दिया पर अलग-अलग रियासतों में इसे संरक्षण प्राप्त हुआ । जयपुर के महाराज सवाई जयसिंह ने आदर्शनगर, जयपुर का निर्माण सं० १७८४ में कराया । संवत् १७१४ में औरंगजेब ने भी औरंगाबाद बसाया था । उदयपुर के महाराणा राजसिंह ने राजसमंद का निर्माण कराया । कई अन्य नरेशों ने भी राजप्रासादों, दुर्गों, मंदिरों और तालाबों का निर्माण करवा कर वास्तुकला की उन्नति में सहयोग किया । इनमें मुगल और हिन्दू स्थापत्य के सम्मिश्रण के कारण एक नयी शैली का उद्भव भी हुआ । जयसिंह की वेधशाला, अहिल्याबाई के मंदिर, अमृतसर का स्वर्ण मंदिर इसी शताब्दी की देन हैं । इन स्थानों और मंदिरों की शिल्पकला का सुंदरवर्णन जैन काव्यग्रंथों में मिलता है । ॐचे कंगूरों, मंदिरों में खचित मूर्तियों, मूर्तियों में जटित रत्नों का वर्णन भी अनेक स्थानों पर मिलता है । इन साधु कवियों ने नगरों के वर्णन में अनेक गजलें लिखी हैं जिनका उल्लेख पूर्व खण्ड में हो चुका है। ---. चित्रकला - मुगल साम्राज्य का पूर्वार्द्ध चित्रकला का वैभवकाल था । अकबर और जहाँगीर दोनों इसके प्रशंसक और पारखी थे पर शाहजहाँ ने चित्रकला की अपेक्षा वास्तुकला पर ही अधिक ध्यान दिया । वह प्रदर्शनप्रिय था । उसके समय की चित्रकारी में सोने चाँदी और रत्नों की जगमगाहट अधिक झलकती है, किन्तु विविध रंगों का सुंदर सम्मिश्रण और प्रयोग नहीं मिलता । उसने अनेक चित्रकारों की दरबार से छुट्टी कर दी । वे राजपुताना और हिमांचलप्रदेश के राजाओं के आश्रय में चले गये और वहाँ चित्रकला की नयी कलमराजपूत और कांगड़ा कलम के नाम से विकसित हुई । औरंगजेब को यह सब पसंद नहीं था । उसने तो बीजापुर के महलों और सिकंदरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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