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________________ २४८ महेंगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास खुमाणरासो की प्रति अपूर्ण है और उसमें केवल राणाप्रताप सिंह तक का वर्णन है। मेवाड़ में तीन खुमाण नामक राणा हुए हैं, प्रथम सं० ८१० से ८६५, द्वितीय ८७०-९०० और तृतीय ९६५ से ९९० तक रहे। यह खुमाण अब्बासिया खलीफा अलमामू (८७०-८९०) के समय था अर्थात् वह खुमाण था जिसे नायक बनाकर यह रचना की गई है। इस समय जो खुमाण रासो प्राप्त है उसमें कितना पुराना और कितना बाद का प्रक्षिप्त अंश है यह कहना कठिन है। शिवसिंह सरोज में जिस खुमाण रासो की चर्चा है उसमें रामचन्द्र से लेकर खुमान तक का वर्णन था। अब तो यह भी कहना कठिन हो गया है कि दलपत या दौलत विजय असली खुमानरासो का रचयिता था या उसके पिछले परिशिष्ट का । द्यानतराय-- आपके पिता श्यामदास गोयल अग्रवाल थे। इनके पूर्वज लालपुर से आकर आगरा में बस गये थे। द्यानतराय का जन्म सं० १७३३ में हआ । इन्हें संस्कृत के साथ उर्दू-फारसी का भी अभ्यास कराया गया था। सं. १७४८ में इनका विवाह हुआ लेकिन गृहस्थ जीवन कष्टमय था। उन्होंने लिखा है --- रुजगार बने नाहिं, धन तौ न घर मांहि. खाने को फिकर बहु नारि चाहै गहना । एक पुत्र जुवाड़ी था, एक मर गया और पुत्री भी विवाहोपरांत दिवंगत हो गई। आगरा उस समय आध्यात्मिक चर्चा का केन्द्र था । मानसिंह सैली सत्संग के लिए प्रख्यात थी। द्यानतराय भी वहाँ जाने लगे और जैनधर्म-दर्शन के प्रति निष्ठा बढ़ती गई। फलतः इन्होंने पूजा, भक्ति और अध्यात्म संबंधी पदों-पद्यों की रचना प्रारंभ की। इनके ऐसे अनेक स्फुट पदों और कृतियों का संग्रह 'धर्मविलास' है। इसमें ३३३ पद हैं । इनमें से कुछ पूजापाठ और बाकी अन्य ४५ विषयों पर लिखे गये हैं। ग्रन्थ की प्रशस्ति से तत्कालीन आगरा की स्थिति पर प्रकाश पड़ता है । उन्होंने रूपचंद, बनारसीदास, भगौतीदास आदि महापुरुषों का उल्लेख किया है -- रूपचंद बनारसी चंद जी भगौतीदास, जहाँ भलेभले कवि द्यानत उछाह सौ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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