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________________ २३४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आदि नमवि अरिहंत पभणंत गुण आगरा, खविय कम्मट्ठगा सिद्ध सुह सागरा तीस छग गुण जुआ धीर सूरीश्वरा, वायगा उत्तम जाण वायण धरा । इसकी भाषा प्राकृताभास मरुगुर्जर है और १८वीं शताब्दी में भी १४वीं शताब्दी की भाषा शैली का स्मरण कराती है। इनकी गद्य शैली का एक नमूना विचारसार प्रकरण ग्रन्थ से दिया जा रहा है। इसके मूल में ३०५ प्राकृत गाथायें हैं इसमें उनका गद्य में अर्थ दिया गया है। यह ग्रंथ सं० १७९६ कार्तिक शुक्ल १ नवानगर में पूर्ण किया गया था। २९७वीं गाथा का अर्थ इस प्रकार किया गया है ओ विचार सार प्रकरण तेहना अधिकार छै । तिहां पहेलो अधिकार गुणठाणानो, बीजे अधिकार मार्गणानो छ । ओ ग्रंथ राधनपुरवासी श्रद्धावंत शांतिदास नामे गृहस्थ तेणे उद्धार सर्व गुण ठाणे, तथा मार्गणाईं भाव सर्व संग्रह्या धारी विचारी चोखा कर्या' । गाथा ३०२ में रचनाकाल बताया है। यह श्रीमद् देवचन्द भाग १ में प्रकाशित है। २४ दंडक विचार बालावबोध सं० १८०३ की रचना है। इसी प्रकार आपकी कुछ अन्य रचनायें भी १९वीं शती की सीमा में पड़ती हैं। इस प्रकार आप १८वीं शती के अंतिम सशक्त लेखकों और आचार्यों में अग्रगण्य हैं। आप सं० १७७७ में गजरात गए, अतः परवर्ती रचनाओं की भाषा पर मरु की अपेक्षा गुर्जर का प्रभाव अधिक है। इनकी स्नात्रपूजा गद्य पद्य मिश्रित रचना है। इनकी नवपद पूजा अथवा सिद्धिचक्र स्तवन यशोविजय और ज्ञानविमल सूरि की पूजाओं के साथ त्रयी रूप में गिनी जाती है। देवविजय - इस नाम के तीन कवि समकालीन हैं जिनका विवरण क्रमशः दिया जा रहा है। प्रथम देवविजय तपागच्छीय उदयविजय १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० २५४-२५५ (न०सं०) । २. वही, भाग २ पृ० ४७३-९६ तथा ५९४ और भाग ३ पृ० १४१७-२० __ तथा १६३९-४० (प्र० सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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