________________
(श्रीमद्) देवचंद
इसमें ज्ञान और धर्मतत्व की चर्चा है, भाषा पर जयपुरी राजस्थानी का विशेष प्रभाव है----
तत्वज्ञान मय ग्रंथ यह जो रचै बालावबोध;
निज पर सत्ता सब लखै श्रोता लहै सुबोध ।' यह ग्रंथ देवचन्द्र ने विमल दास की दो पुत्रियों भाईजी और अमाई जी के लिए लिखा था। सं. १७७५ में ज्ञानधर्म के स्वर्गवासी होने के कुछ समय पश्चात् ही यह रचना हुई थी।
नयचक्रसार गुजराती लोक भाषा में रचित प्रसिद्ध गद्य रचना है। इसका मंगलाचरण संस्कृत के तीन श्लोकों में आबद्ध है। यह मल्लवादि कृत द्वादशार नयचक्र पर आधारित है। आपके कृतित्व का परिचय देते हुए श्री देसाई ने अध्यात्मरसिक पंडित देवचंद्रजी नामक एक विस्तृत लेख लिखा है। वह श्रीमद् देवचंद्र जी विस्तृत जीवन चरित्र की प्रस्तावना में छपा है।
गुरु गुण छत्रीसी बालावबोध वज्रसेन शिष्य कृत प्राकृत मूलग्रंथ का बालावबोध है। आपने अपनी चौबीसी का स्वोपज्ञ बालावबोध लिखा है। इसका मूल श्रीमद्देवचंद भाग २ में प्रकाशित है। इनकी बीसी भी वहीं प्रकाशित है, इसका आरम्भ इस प्रकार हआ है
वंदो वंदो रे जिनवर विचरतां वंदो;
कीर्तन स्तवन नमन अनुसरतां, पूर्व पाप निकंदो रे । इनके अतिरिक्त आपने अनेक संज्झाय और स्तवन लिखे हैं जिनमें प्रभंजना संज्झाय, साधुनी पाँच भावना संज्झाय, ठंठण मुनि संज्झाय, अष्ट प्रवचन मात संज्झाय, आठ रुचि संज्झाय, निजगुण चितवन मुनि संज्झाय, गजसुकमाल संज्झाय, द्वादशांगी संज्झाय आदि उल्लेखनीय हैं
और ये सभी श्रीमद् देवचन्द भाग २ में प्रकाशित हैं । इनमें रुचि रखने वाले अध्येता वहाँ इन्हें देख सकते हैं। इसी प्रकार तीर्थों पर चैत्यपरिपाटी स्तवन भी आपने कई लिखे हैं जैसे शत्रुजंय चैत्र परिपाटी स्तवन, गिरनार स्तुति और सिद्धाचल स्तुति इत्यादि । नमूने के लिए श@जय चैत्य परिपाटी का आदि दिया जा रहा है१. सम्पादक डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल --राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों ___ की ग्रंथसूची भाग ३ पृ० १४ और पृ० १७५ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org