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दीपचन्द
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इसमें रचनाकाल खंडित है । इसका प्रारंभ दिया जा रहा है - बंदु श्री जिन (महा)वीर धीर संजम व्रतधारी;
उपगारी अणगार सकल भवि जन सुखकारी। वीरस्वामीरास-यह महावीर के चरित्र पर आधारित है। इसका आदि ---
श्री जिन वर्द्धमान पाओ प्रणमीई, भाव सहित श्री गौतम नमीई ।
त्रैलोक्य मध्ये सौख्यकारक आज शासन अहनई
चउवीसमा वर्द्धमान स्वामी धवल गाऊं तेहनई । पांचम चौपाई - इसमें पंचमी व्रतकथा तथा उसका माहात्म्य बताया गया है--
करुं वले कर जोडि के प्रवचन मात प्रणाम,
तप महिमा पंचमी तणो कहूं भवीहित काम ।' श्री देसाई ने जैन गुर्जर कवियो के प्रथम संस्करण में रचनाकाल न होने के कारण सुदर्शन सेठ चौपइ और वीर स्वामी रास को १९वीं शती की रचना मान कर इसके अन्य वीरचंद नामक कर्ता का उल्लेख किया था। वस्तुतः दोनों एक ही हैं। इनकी पुण्यसेन चौपइ ( सं० १७७६ भाद्र शुक्ल १० गुरुवार ) की प्रारंभिक पंक्तियां प्रस्तुत हैं -
कारण शिव संपति करण, तारण भवदधि तीर, विघन विदारण वंदीय, विस्तारण बुधि बीर । इसमें दान का महत्व बताया गया है, यथा--
दौलित बाधै दान थी धनै दालिद दूरि ।
दाने सुख संपति दसा, प्रगटै जगि जस पूर । रचनाकाल -- संवत सतरे बरस छिहत्तर भाद्रव मास सजलतर जी,
सूदि दसमी तीथवार सूरागर सीधयोग सूहकर जी। इसमें ऊपर बताई गुरु परंपरा भी दी गई है। अतः यह प्रस्तुत दीपचंद की ही रचना है। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई---जैन गुर्जर कवियो भाग ३ पृ० १४४-१४७
तथा १३९३-९४ (प्र०सं०)। २, वही, भाग ५ पृ० ४१४-४१५ (न० सं०) ।
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