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________________ २२२ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास - दीपचंद-इस नाम के भी दो-तीन लेखक इसी शती में मिलते हैं एक दिगम्बर आम्नाय के दूसरे खरतरगच्छ के, (श्वेतांबर) तीसरे लोकागच्छीय । __ये गुजराती लोकागच्छीय दीपचंद रूपजी>जीवजी>धनराजजी की परंपरा में वर्द्धमान के शिष्य थे । इनकी सुदर्शनसेठ रास, गुणकरंड गुणावली चौपइ, वीर स्वामी रास और पांचम चौपइ तथा पुण्यसेन चौपइ का विवरण प्राप्त है। गुणकरंड गुणावली चौपइ (सं० १७५७ विजयदशमी) का आदि --- संपति सुखदायक सरस प्रणमुं श्री जिनपास; तीर्थकर तेवीसमो अविचल पूरण आस । रचनाकाल-संवत सत्रे सतावने वरसे, दुसरा हारै दीवसै जी; सरस संबंध कह्यो मन सरसै, सुणिया भविजन हरसे जी। गुरुपरंपरा -गिरिओ गछ गुजराती गाजै, वसुधापीठ विराजै जी। धर सगली जाण धनराज, इधकी जस आवाजै जी। निर्मल गुण भरी या बहु न्यांनी, मुनिवर श्री बधमान जी; शिष्य तैहना ऋष दीप सुज्ञानी, धरै सदा गुण ध्यान जी ।' इसमें गुणावली के गुणों का वर्णन करता हुआ कवि लिखता है गुणवंत नार गुणावली, इधकै पुन्य अख्यात; किण विध सिध कारज करी वसुधा हुइ विख्यात । गुण तिणरा दाखू गहिर, वचने सरस बणाय, बुधि कल बल छल से बहू, चतुर सुणो चितलाय । इनकी दूसरी रचना सुदर्शन शेठ रास अथवा कवित्त अपेक्षाकृत अधिक ज्ञात आख्यान पर आधारित और प्रकाशित है। इसे कुंवर मोतीलाल रांका ने शीलरक्षा अर्थात् सुदर्शन सेठ चरित्र नाम से व्यावर से प्रकाशित किया है। शील का महत्व दर्शाते हुए कहा गया है दानशील तप भाव मोक्षपुर च्यारे मारग, वीतराग मुख बयण जिनधरम ओ न कह्यो-जग । धारत मनुष्य जे अधरम वसुधा जस शिवसूख वरे; चहुं माहि वशेष विचारतां शील-धर्म-सर्व थी सरे । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० १८४-१८८ (न० सं.)। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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