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________________ ज्ञानसमुद्र १९५ स्वयं महावीर ने महानिशीथ में वर्णित नंदिषेण चरित्र का उपदेश किया। कवि ने यह रचना भी हेमसरि कृत वीरचरित से लिया है। रचनाकाल सम्बन्धी दो पाठ मिलते हैं--'संवत सत्तर सइ पंचवीसई, राजनगर कूजवारइ और संवत सत्तर पंचवीसा वरसइ कार्तिक वदि कुजवारइ; पर दोनों से कोई भ्रम नहीं उत्पन्न होता अतः सं० १७२५ रचनाकाल निश्चित है। श्रीपाल (सिद्धचक्र) रास अथवा चौपाई (४० ढाल सं० १७२६ आसो कृष्ण ८ गुरुवार शेखपुर, अहमदाबाद) यह रत्नशेखर सूरि कृत श्रीपालचरित्र पर आधारित है। इसमें श्रीपाल के चरित्र का उदाहरण देकर सिद्ध चक्र का माहात्म्य दर्शाया गया है । यह रचना भी प्रकाशित हो चुकी है। आर्द्र कुमार चौपाई अथवा रास, स्वाध्याय या ढाल (१९ ढाल ३०१ कड़ी, सं० १७२७ चैत्र शुक्ल १३ सोमवार लघुवटपद्र) का आदि :दोहा- सकल सुरासुर जेहना भावे पूजे पाय, __ ऋषभादिक चउबीस हुं ते प्रणमु जिनराय । यह चरित्र सूयगडांग वृत्ति और उपदेश चिंतामणि पर आधारित है। इसे जगदीश्वर प्रेस वम्वई से प्रकाशित किया गया है। सनतचक्री रास (३१ ढाल सं० १७३० माग० कृष्ण १, मंगल चक्रापुरी) यह उत्तराध्ययन की वृत्ति पर आधारित है और जैन ज्ञानदीपक सभा से प्रकाशित है । शांब प्रद्युम्न रास और चौबीसी अथवा चतुर्विंशति जिनस्तवन अप्रकाशित कृतियाँ हैं जबकि स्थूलभद्र नवरसो (नवरस गीत) और अर्बुद ऋषभ स्तव अथवा आबू चैत्य परिपाटी प्रकाशित हैं। अन्तिम रचना जैनयुग सं० १९८६ में प्रकाशित है। इनके अलावा महावीर स्तवन, पार्श्वनाथ स्तवन, स्थूलभद्र संज्झाय, राजीमती गीत, वैराग्य गीत आदि कई अन्य कृतियाँ भी उपलब्ध हैं।' श्री देसाई ने श्रीपाल रासको माणिक्य सागर की कृति कहा था परन्तु वस्तुतः यह ज्ञानसागर की रचना है। ज्ञानछत्रीसी को ज्ञानसागर की रचना कहा गया था १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ५७-८० और २९४ तथा भाग ३ पृ० ११२७-३७ (प्र०सं०)। २. वही भाग ४ पृ० ३७-६४ (न० सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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