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________________ १९४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास १७२१ पौष, शुक्ल १५ गुरुवार, शेखपुर) उपदेश चिंतामणि से लिया है। यह भी हेमसूरि की ही रचना पर आधारित है। धन्ना अणगार स्वाध्याय अथवा ढालिया (५९ कड़ी सं० १७२१ श्रावण शुक्ल २, शुक्रवार वसगाँव) का आदि इस प्रकार है-- करम रूप धरि जीववा, धीर पुरुष महावीर, प्रणमुतेहना पयकमल, अकचित्त साहसधीर । रचनाकाल--रही चोमासि सतर अकबीसे, श्री खसगाम मझारिजी, श्रावण सुदि तिथि बीज तिणइ दिनि, भृगुनन्दन भलइ दिनवार जी। यह मोटुं संज्झाय माला संग्रह में प्रकाशित है, और साराभाई नवाब के जैन संज्झाय संग्रह में भी छपी है। रामचन्द्र लेख (५ ढाल सं० १७२३ आसो शुक्ल १३) में हनुमान द्वारा रामचन्द्र की मुद्रिका को सीता के पास पहुँचाने का वर्णन किया . गया है लेष मुद्रिका हनुमंत जाइ, दीयां सीतानि सुषदाई हो। आषाढ़भूति रास अथवा चौपाई प्रबन्ध, ढाल (१६ ढाल २१८ कड़ी सं० १७२४ पौष कृष्ण द्वितीया, चक्रापुरी) आदि-- सकलऋद्धि समृद्धि कर त्रिभुवन तिलक समान, प्रणमुं पास जिणेसरु, निरुपम ज्ञाननिधान । यह रचना तिलकसूरि कृत पिंडविशुद्धि की टीका और उपदेश चिंतामणि पर आधारित है। यह लोकप्रिय रचना है, इसकी अनेक प्रतियाँ प्राप्त होती हैं। परदेशी राजा रास (३३ ढाल ७२१ कड़ी सं० १७२४ ? ३४ ज्येष्ठ शुक्ल १३, रविवार चक्रपुरी) यह कथा रायपसेणीसूत्र से ली गई है। कवि ने रचना काल इस प्रकार बताया है -- श्री चक्रापुरी गाम मां संवत् सत्तर चौबी (त्री) सेरे । इसमें चौबीसे और चौत्रीसे दोनों का घपला होने से एक दशक का अंतर रचकाकाल में पड़ गया है। नंदिषेण रास अथवा चौपाई (१६ ढाल २८३ कड़ी सं० १७२५ कार्तिक कृष्ण ८, मंगलवार राजनगर अहमदाबाद) गौतम के पूछने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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