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________________ 4८४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसमें तपागच्छ की परम्परा का विस्तृत ब्यौरा दिया गया है। महावीर के पट्ट पर सुधर्मा से लेकर सौधर्म, कौटिक, चन्द्र गच्छ, वनवासी, वद्रगच्छ का विवरण देता हुआ कवि बताता है कि महावीर की परम्परा में चौवालीसवें पट्ट पर सं० १२८३ में जगच्चंद्र ने प्रतिवादी पर विजय प्राप्त करके शक्तिकुमार राणा से 'तपा' की विरुद प्राप्त की। इसी परम्परा में अकबर प्रतिबोधक जगतगुरु हीर विजय और विजयसेन, विजयदेव (जहाँगीर को प्रभावित करने वाले) और विजय सिंह हुए, इन्हीं के शासनकाल में मेदपाट (चित्तौड़) में जहाँ राणा जगतसिंह राजा थे, कवि ने इस रचना का प्रारम्भ किया। ___ कवि कुशलमाणिक्य>सहजकुशल>लक्ष्मीरुचि>विवेक कुशल> विजयकुशल>कीर्तिकुशल का शिष्य था। इस प्रकार तपागच्छ की परम्परा का संक्षिप्त परिचय जानने के लिए इस रचना का ऐतिहासिक महत्व है। इसमें काव्यगुण भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। अनुप्रास, शब्दमैत्री और लय आदि काव्यगुणों से यह अलंकृत है । इसकी अंतिम पंक्तियाँ आगे दी जा रही हैं ओ प्रबन्ध बांचे सुणे, तस सेवें बहु सुलताणां रे, घरि नवनिधि ऋधि वृद्धि बढ़े, निति उत्सव कोडि कल्याणा रे । घृति मति गति वर कांतिकला, लक्षण गुण प्रभुता राजे रे । विजय विद्याजय चातुरी, वाधे भाग्यादिक लाजे रे ।' ज्ञानधर्म--आप खरतरगच्छीय राजसार के शिष्य थे। आपने सं० १७३५ विजयादसमी को दामन्नक चौपाई लिखी। इसका उद्धरण और अन्य विवरण प्राप्त नहीं है।' ज्ञाननिधान--खरतरगच्छीय कीर्तिरत्न शाखा में कुशलकल्लोल के प्रशिष्य तथा मेघकलश के शिष्य थे। इन्होंने विचारछत्तीसी की रचना सं० १७१९ वैशाख १२ शुक्रवार को की । यह सिद्धान्त सम्बन्धी १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १७४-७९ (प्र० सं०) और भाग ४ पृ० १५३(न० सं०)। २. वही भाग ३ पृ० १२८१ (प्र० सं०) और भाग ५ पृ० १६ (न० सं०) ___ तथा अगरचन्द नाहटा परंपरा पृ० १०८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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