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________________ १७८ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जीवविजय-तपागच्छ के विजयसिंहसूरि>गजविजय>गुणविजय> ज्ञानविजय के आप शिष्य थे। आप अच्छे गद्य लेखक थे। आपने जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति बालवबोध सं० १७७०, प्रज्ञापना सूत्र बालावबोध १७८४, अध्यात्मकल्पतरु बालावबोध १७९०, ६ कर्मग्रंथ बालावबोध १८०३ और जीव विचार बालावबोध की रचना की है। इन बालावबोधों के गद्य का नमूना नहीं प्राप्त हुआ। कुछ विवरण प्राप्त है। अध्यात्मकल्पद्रुम मूलतः मुनि सुंदर सूरि का ग्रंथ है । गुरुपरंपरा प्रशस्ति के संस्कृत छन्दों में हैयथा-श्रीमत्तपगणपतयः पूज्य श्री विजयदेव सुरीन्द्राः असंस्तेषां पट्टे सूरि विजयसिंहाख्या।''इत्यादि आगे ऊपर दी गई गुरुपरंपरा बताई गई है। इसी प्रकार ६ कर्म ग्रंथ बालावबोध के आदि की पंक्ति भी संस्कृत में है, यथा-- प्रणिपत्य जिनवीरं वृत्यनुसारेण जीवविजयाह्व, वितनोति स्तूबाका), कर्मग्रंथे सुगमरीत्या । जीवविचार बालावबोध की भी दो पंक्तियाँ देखिए श्री मज्जीव विचाराभिध प्रकरणे विनिर्मित स्तबकः श्री जीवविजय विदुषा स्वल्पमतीनां विबोधकृते ।"१ जीवसागर--तपागच्छ के कुशलसागर>हीरसागर>गंगसागर आपके गुरु थे। आपने अपनी रचना 'अमरसेन वयरसेन चरित्र' ( सं० १७६८ श्रावण कृष्ण ४ मंगल ) की अंतिम पंक्तियों में उपरोक्त गुरुपरंपरा का उल्लेख किया है। कवि ने कुशलसागर से पूर्व विजयरत्न, विजयप्रभ, विजयदेव, विजयसेन और हीरविजय का भी सादर स्मरण किया है और हीरबिजय को अकबर प्रतिबोधक के रूप में प्रणाम किया है, यथा पातिसाह प्रतिबोधक सुंदर सोहनगुरु अवतार रे हीरविजय सूरि हीरो साचो जैन तणो सिणगार रे । इसका रचनाकाल इन पंक्तियों में बताया गया है १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ३ पृ० १६४३-४४ (प्र० सं०) और भाग ५ २७८-२८ (न० सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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