________________
जीवण
१७७
सखि आविलो कारतक मास प्रभू घर आविया, में तो कीधलो सोल सणगार वालो मन भाविया। जीरे मन राखे बीसवास वालो तेहने मले;
प्रभु राखो चरण निवास, जीवो विनती करे।' इसमें विप्रलंभ शृंगार के बजाय संयोग का वर्णन है। यह विशेषता इसलिए है कि कवि को मिलने का पूर्ण विश्वास था । विश्वास अवश्य फलदायी होता है। इससे पूर्व चतुरंग चारण ने कृष्ण बारमासा लिखा। इस काल में गुर्जर भाषा में सरसकाव्य' प्रचुर भाषा में लिखा गया। यह उसका उत्कर्ष काल था जैन कवियों के अलावा अनेक जैनेतर कवि इसी समय गुजरात में हुए जिनमें प्रेमानंद, शामलभट्ट आदि को राष्ट्रीय कवियों की कोटि में गिना जाता है।
जीवराज -ये पूज्य गोविंद के अनुयायी थे । इन्होंने सं० १७४२ में चित्र संभूति संज्झाय की रचना बीकानेर में की। यह रचना ५० कड़ी की है। यह सं० १७४२ या ४६ से लिखी गई। रचनाकाल बताते हुए जीवराज ने लिखा है -
संवत सतर वियाल वरष कुमार मास उल्हास मे अकम सोमै अह तवीया, राग ढाल विलास । पूज श्री गोविंद प्रसादै विक्रमनयर मझार ओ,
जीवराज अप्पइ संघ केरी वीनती अवधार । इसमें रचनाकाल सं० १७४२ बताया गया है पर अन्य प्रतियों में बियाल की जगह 'छियाल' भी मिलता है इसलिए यह निश्चित नहीं है कि रचना १७४२ या १७४६ की है। इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है
प्रणमुं सरसति सामणी मांगु वचन विलास, साधु तणा गुण वर्णवू करज्यो बुद्धि विकास । सद्गुरु सेवो प्राणी तम्हें चित्तसंभूति परि जोय;
गाव चरावइ गुवालिया, ब्रह्म भिखु सुत दोय ।' १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २१८४ प्र.सं. २. वही भाग ३ पृ० २१८३ (प्र० सं०)। ३. वही, भाग २ पृ० ३६२, भाग ३ पृ. १३३२ (न० सं०) और भाग ५
पृ० ४० (न०सं०)। १२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org