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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसके द्वारा निर्मित 'ताज' संसार के सात आश्चर्यों में गिना जाता है । अब्दुल हमीद लाहौरी ताज का निर्माण बारह वर्षों में होना बताता है किन्तु ट्रे बर्नियर इसे बाईस वर्षों में बताता है । इसके निर्माण पर तीन करोड़ रुपये व्यय हुए थे । इसके अतिरिक्त उसने प्रसिद्ध मयूर सिंहासन बनवाया था । जामा मस्जिद, मोती मस्जिद आदि कई मस्जिदों, मकबरों का निर्माण कराया था और एक पूरा नगर अपने नाम पर शाहजहानाबाद बसाया था । उसके शासनकाल में कला और साहित्य की अभूतपूर्व उन्नति हुई । पंडितराज जगन्नाथ उसके दरबारी कवि थे । उसने अपने पुत्रों की शिक्षा का उत्तम प्रबन्ध किया था । दारा की रुचि धर्म, दर्शन, अध्यात्म की तरफ थी । अतः वह इनका अध्ययन करने काशी आया था । उसके नाम पर बसा दारानगर आज भी वाराणसी का मशहूर मुहल्ला है । औरंगाबाद औरंगजेब के काशी आगमन की याद दिला रहा है । इस काल को मुगल साम्राज्य का स्वर्णयुग कहा गया है । सं० १७१४-१५ में शाहजहाँ बीमार पड़ा और उत्तराधिकार का युद्ध उसके पुत्रों में प्रारम्भ हो गया । ३१ वर्षो तक शासन करते-करते शाहजहाँ भी वृद्ध और कमजोर हो चुका था । उस समय दारा ४३ वर्ष, शुजा ४१, औरंगजेब ३९ और मुराद ३३ वर्ष के हो चुके थे । इस युद्ध के दौरान सं० १७१५ में औरंगजेब ने शाहजहाँ को बन्दी बना लिया, सामूगढ़ के युद्ध में औरंगजेब विजयी हुआ और दारा के पक्षपातियों ने अवसर का लाभ लेकर औरंगजेब का समर्थन शुरू कर दिया और वह गद्दी पर बैठा । सं० १७१६ में उसने दारा और शुजा तथा १७१८ में मुराद का भी अन्त कर दिया । वह निर्द्वन्द शासन करने लगा और सं० १७६४ तक अपनी मृत्यु पर्यन्त राज्य किया । इस प्रकार १८वीं शती के पूर्वार्द्ध में शाहजहाँ के डेढ़ दशकों के शासनोपरांत अधिकतर समय में औरंगजेब का ही शासनकाल था । इसी के शासनकाल में मुगल साम्राज्य का पतन भी प्रारंभ हो गया । इसका जन्म सं० १६७५ में हुआ था । यह प्रायः ४० वर्ष की अवस्था में गद्दी पर बैठा और आधी शताब्दी तक इसने देश के बहुत बड़े भूभाग पर शासन किया । सं० १७१६ में वह बाकायदे सम्राट् बन चुका था । उसे प्रारम्भ में विजय और सफलता मिली क्योंकि वह शाहजहाँ के समय से ही गुजरात, मुल्तान और दकन आदि प्रदेशों का सूबेदार रह चुका था तथा मीर मुहम्मद हाशिम से अरबी, फारसी की अच्छी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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