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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास खण्ड ३ ( विक्रम सं० अठारहवीं शती ) पूर्व पोठिका--- प्रसिद्ध रूसी आलोचक ग्रियोरेव अपोलान अलेक्जान्दोविच ने ठीक ही कहा है कि साहित्य किसी राष्ट्र की विकास-प्रक्रिया की तर्कहीन आंगिक उपज है "... irrational organic product..."। यह सच है कि साहित्य अपने देश-काल की उपज है, साथ ही वह देशकाल का निर्माता भी है। दोनों में अन्योन्य सम्बन्ध है। इसलिए किसी साहित्य का इतिहास उसके देशकाल से अभिन्नरूप में जुड़ा होता है और देशकाल निरपेक्ष साहित्य का अध्ययन निराधार होता है। अतः १८वीं (विक्रम) शती के हिन्दी जैन साहित्य का सम्यक् परिचय प्राप्त करने के लिए तत्कालीन सामाजिक पीठिका से परिचित होना पाठक के लिए परमावश्यक है। लोकतंत्र में लोक या समाज शासनतंत्र को प्रभावित करता है परंतु राजतंत्र में राजा ही काल का कारण होता है और समाज को प्रभावित-परिचालित करता है। १८वीं शती में भारत की शासन व्यवस्था राजतांत्रिक थी, इसलिए सर्वप्रथम तत्कालीन राजनीतिक स्थिति का परिचय प्राप्त करना उपयोगी है। राजनीतिक पीठिका - विक्रम की १८वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध राजनीतिक दृष्ट्या परस्पर पर्याप्त भिन्न प्रकृति के हैं। पूर्वार्द्ध में दिल्ली में मुगल सम्राट शाहजहाँ का शासन था। वह सर्वश्रेष्ठ मुगल सम्राट् था। खफी खाँ ने लिखा है कि अकबर महान विजेता और साम्राज्य संस्थापक-नियामक अवश्य था किन्तु सुप्रबन्ध, शानशौकत, सुशासन और आर्थिक सुदृढ़ता की दृष्टि से शाहजहाँ सर्वश्रेष्ठ मुगल शासक था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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