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जिनहर्ष
प्रथम चन्दनमलयागिरि रास की चर्चा पहले की जा चुकी है। द्वितीय चन्दनमलयागिरि रास (२३ ढाल ४०७ कड़ी सं० १७४४ श्रावण शुक्ल ६ गुरुवार, पाटण) का आदि
सकल सुरासुर पयकमल सेवइ धरि आणंद ।
त्रिभुवनपति सम्पति करण प्रणमुं पास जिणंद । रचनाकाल--युग ब्रह्मा मुख जलनिधि जी चंद्र संवच्छर जाणि ।
रत्नसिंह राजर्षिरास (३७ ढाल ७०९ कड़ी सं० १७४१ पोष वदी ११, पाटण)
हरिश्चन्द्र रास (३५ ढाल ७०० कड़ी १७४४ आसो शुक्ल ५, पाटण)
अमरसेन वयरसेन रास (सं० १७४४ फाल्गुन शुक्ल २ बुधवार पाटण)
इन सभी रचनाओं में कवि ने अपने को शांतिहर्ष का शिष्य बताया है।
अवंति सुकुमाल स्वाध्याय अथवा चौपई (१३ ढाल १०२ कड़ी सं० १७४१ वैशाख शुक्ल ८ शनिवार, राजनगर) के दो पाठांतर रचनाकाल सम्बन्धी मिले हैं जिनके अनुसार संवत् १७४१ निश्चित है परन्तु माह तिथि भिन्न हैं, दूसरे पाठानुसार सं० १७४१ आषाढ़ शुक्ल अष्टमी को रचना पूर्ण हुई बताया गया है ।
उपमिभव प्रपंचारास (१२७ ढाल २९७४ कड़ी सं० १७४५ ज्येष्ठ शुक्ल १५ पाटण) बड़ी रचना है और यह सिद्धर्षि कृत इसी नाम की प्रसिद्ध प्राकृत रचना पर आधारित है। इसका रचनाकाल 'बाणयुग रिषिचन्द वच्छरे ज्येष्ठ पूनिम दीस' कहकर बताया गया है।
कुमारपाल रास इनकी रचनाओं में ऐतिहासिक महत्व की रचना है। यह १३० ढाल २८७६ कड़ी की बृहद् रचना है और सं० १७४२ आसो शुक्ल १० रविवार को पाटण में पूर्ण हुई थी। इसके आरंभ की पंक्ति प्रस्तुत है
श्री सरसति भगवति नमुं बुद्धि तणी दातार,
मूरख ने पण्डित करे करतां न लावे बार। इसमें कवि ने क्षेम शाखा का भी उल्लेख किया है, यथा
खरतरगछ मांहि खेम शाखा मांहे राजा हो ।
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