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________________ चन्द्रविजय १२७ चंद्रविजय -प्रथम चंद्रविजय तपागच्छीय ऋद्धिविजय के प्रशिष्य और रत्नविजय के शिष्य बताये गये हैं। इनकी रचना 'जंबुकुमार रास' सं० १७३४ पौष शुक्ल ५, मंमलवार को कोरडादे में रची गई थी। आदि ---वामानंदन पास जी त्रिभुवन नो आधार, ___चरण कमल नमतां थका लहीइ सुख अपार । प्रथम गणधर वीर नों पृथ्वीनंदन जाण, गौतम गोत्र गौतम नमुं, जस नामइ कोडि कल्याण । हंसवाहन हसतीवदन कविजन नी आधार, सारद मुझ मया करी, देजो बुद्धि अपार । कथा के विषय वस्तु में कवि जंबुकुमार के त्याग का महत्व वर्णन करता है, यथा नवाणुं कोडि सोवन तजी, धन ते जंबुकुमार। आठ कन्या प्रभवा सहित, लीधो संयमभार । रचनाकाल और काल --नइउ देस मांहि भलो कोरडादे नयर सुखवास; बसइ श्रावक पुन्यवंत जिहां, जे पूजइं रे जिनवर श्री पास । संवत सत्तर चौत्रीसमइ, पोस मास सुखकार, सुदि पांचम मंगल दिनइ, मन पायो रे अति हर्ष अपार ।' जंबुकुमार का जैसा काव्योचित सरस वृत है उससे अधिक मर्मस्पर्शी चरित्र स्थूलिभद्र का है। चंद्रविजय II दूसरे चंद्रविजय ने स्थूलिभद्र कोशा बारमास, नामक बारहमासा ( १३ ढाल ६७ कड़ी ) सं० १७३४ के आस पास ही लिखा था। केवल गुरुपरंपरा अलग है । इन्हें तपागच्छीय लावण्यविजय का प्रशिष्य और नित्यविजय का शिष्य बताया गया है। इन्होंने अपनी गुरुपरंपरा इस प्रकार बताई है श्री तपागच्छ तखख सोहे श्री विजयदेव सूरीद रे, तस सीस मांहे प्रधान सुंदर, वाचक सति सुखकंद रे । श्री लावण्य विजय उवझाय सेवक, श्री नित्यविजय बुध शिष्य, कहे श्री चंद्रविजय नेह धरी ने, सहुमन अधिक जगीस रे । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ३०३, ३०५, (प्र० सं०) भाग ५ पृ० ५ (न० सं०)। २ह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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