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________________ १२१ गंगमुनि (गांगजी) - गंगमुनि (गांगजी)---आप लोंकागच्छ के रूप ऋषि>जीव>वरसिंह >जसवन्त>रूपसिंह>दामोदर>कर्मसिंह>केशवतेजसिंह>कान्ह> नाहर>देवजी> नरसिंह >लखमीचन्द के शिष्य थे। आपकी रचना 'रत्नसार तेजसार रास' (४ खण्ड ३८ ढाल ८०९ कड़ी सं० १७६१ ज्येष्ठ शुक्ल ६ गुरु, हालार) का प्रारम्भ इस दूहे से हुआ है-- श्री शांति जिनेसर जयकरू, प्रणमं तेहना पाय । - नाम जपंता जेहनो, पातिक दूरि पलाय । इस कथा द्वारा दान का महत्व दर्शाया गया है, यथा-- दाने पर सुणयो कथा सांभलता सुख होय, आलस निद्रा परिहरी, सांभलिजो सहु कोय ।' रचना में उपरोक्त विस्तृत गुरु परम्परा बताई गई है। रत्नसार काशी के भूपाल जितशत्रु के पुत्र बताये गये हैं, यथा--- देसां सिर अति दीपतो कासी देस विसाल, नगरी भली वाणारसी जितशत्रु भूपाल । इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया है ---- संवत सतर अकसठा बरसे, जेठ मास मनि हरषे रे, शुक्ल छठि गुरुवारे परब, चरित्र रच्यो मे वर्षे रे । अन्त--चौथे षंडे आठ मी ढाले; अह दान तणां गुण जाणो रे, गंग मुनी कहे जे धर्म करसे, ते लहेसे कोडि कल्याण रे । इनकी दूसरी रचना जंबू स्वामी स्वाध्याय (४ ढाल सं० १७६५ श्रावण शुक्ल २) का रचनाकाल देखिये - संवत (सत्तर) पांसठे मास श्रावण शुदि बीज, गुण गाया राजपुर, मीठा जांण अमीय रे । इसका आदि और अन्त दिया जा रहा है --- आदि--श्री गुरुपद पंकज नमी समरी सारद नाम, जंबू कुमर गुण गावतां, सीझे वंछित काम । अन्त ---गुरु लखमीचन्द चर्ण प्रभावे गंगमुनी कर जोड़ कहैं, जे भाव भण से अथवा सुणसें ते मनवंछित सुखलहै । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कविओ भाग ५ पृ० २१८ (न०सं०) २. वही भाग ५ पु० २१९ (न०सं०) । . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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