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________________ १२० - भौम, वटपद्र बडोदरा) का प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है- गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद इतिहास सारद सुभगति दायिणी, सारद चंद वदन्न, सारद सोभाकारिणी, सारद सदा प्रसन्न । श्री गुरुना सुपसाय थी, निर्मल बुद्धि रसाल, रास रचूँ नवकार नो, जिम होवे मंगलमाल ।' नवकार मन्त्र का माहात्म्य वर्णन करता हुआ लेखक लिखता है -- जिम विषधर बिष उतरे, गुणतां मन्त्र विशेष, तिम नवपद नां ध्यान थी, पाप न रहे विशेष । राजसिंह रतनवती पाम्या सुख अपार, तास चरित सुणज्यो सहू, पहिला भवथी सार । रचनाकाल - संवत सत्तर पंचानबे आसो सुदि दसमी कुजवार रे, बटपद्र पास पसाउले, रास रच्यो नवकार रे । इस कवि ने गोड़ी पार्श्वनाथ के पास यह रचना की और स्वयं को गोड़ीदास कहा या वस्तुतः इसका नाम ही गोड़ीदास था यह भी एक कौतूहल का विषय है । इसकी यह पंक्ति इस सन्दर्भ में विचारणीय है- प्रभु पास गोड़ीदास पभणे सकल संघ मंगल करू, सम्भावना यही है कि श्रावक कवि का यह नाम ही होगा क्योंकि यह नाम नयविमल कृत जम्बूकुमार रास की प्रतिलिपि कर्ताओं के संदर्भ में भी आया है यथा - सुश्रावक पुण्यप्रभावक संघवि गोड़ीदास - इस रचना के अन्त में लिखा है ग्रन्थ साप वृदारवृत्ति पंचकथा सुविचार, त्रण्य कथा इहभव तणि दो परभव सुषकार । ढाल वीसमी मेवाडे कही रास रच्यो नवकार हो, गोडी गिरुओ रे पास पसाउले रे संघ सयल जयकार । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ४२४-४२७ प्र० सं० । २. वही भाग ३ पृ० ३. बही भाग ४ पृ० ४. वही भाग ५ पृ० Jain Education International १३७७ ( प्र० सं० ) । ३९१ ( न०सं० ) । १५८ - १६१ ( न० सं० ) । 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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