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________________ क्षेमविजय १०३ प्रह उठी नमीयें सदा, शासननाथ सधीर, त्रिशलानन्दन जगतिलो वरसुखदायक वीर । पंचमअंगे प्रगट छे करु निगोद विचार, सद्दवहतां सूधे मने, सही हुवे सुखकार । इसके अन्त का 'कलश' आगे प्रस्तुत है-- वीर जिणवर सयल सुखकर सत्यपुर वर सोहले। सेवे सुरासुर दीप्तिभासुर भविक जन मन मोहो । निज गुणे गजित कुमति वजित रत्न समुद्र सूरीस। मन सुद्ध गावे सही पावे, क्षमा प्रमोद जगीस ओ।' क्षमासागर -जिनधर्म सूरि के समय में इन्होंने 'शत्रुजय बृहत्सव' (२ ढाल) को सं० १७३१ चैत्रशुक्ल ५ को पूर्ण किया। इसका प्रारम्भ इस ढाल से हुआ है "हठीला वयरी नी" दाणा दीही मनमइ हुंती रे, आत करेवा खांत रे, डुगर भलो। देस सोरठ मइ शोभतउ रे लाल । सोरठ दे स सोहामणउ रे, तीरथ जिहां बहुभांत रे, डुगर भलो। रचनाकाल--संवत सतर इकत्रीस मै बलि चैत्री हो सुदि पंचमी जाण । श्री जिनधर्म सूरीसरु, जिण भेट्या हो सकलइ मंडाण । अहम्मदाबाद खंभाइती, विमला दे ही आसबाइ खास । संघ साथइ इम प्रेम सु, ववराव्या हो छठम नइ उल्लास । अन्त - मन नी आस्या सहू फली, रंगइ गाया हो शेव्रुज गिरराय से । क्षमासागर मुनिवर भणइ, बलि होज्यो सेवतो तुव पाय से । क्षेम विजय - तपागच्छीय देवविजय के शिष्य शांतिविजय के ये शिष्य थे । इन्होंने कल्पसूत्र बालावबोध सं० १७०७ वैशाख शुक्ल गुरुवार को महेमदाबाद में लिखा । प्रारम्भ १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--- जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १५२७-२८ - प्र० सं० भाग ५ पृ० ३७२ (न० सं०)। २. वही भाग २ पृ० २८३ और भाग ४ पृ० ४४५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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