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________________ १०२ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भवविषय वणा जे चंचला सौख्य जाणी, प्रियतम प्रिययोगा भंगरा चित्त आणी। करमदल खपेई केवलज्ञान लेई, घनघन जन तेई, मोक्षसाधे जिकेई ।' यह रचना (सत्तरमा शतक) प्राचीन गुर्जरकाव्य में प्रकाशित है। इनकी दूसरी रचना 'वंकचूल रास सं० १७५६ में पूर्ण हुई जिसका आदि आगे प्रस्तुत है त्रिभुवननायक गुणतिलो, प्रणमुं आदि जिणंद, जग जन तिमिर निवारवा उदयो पूनिम चंद । इसमें वंकचूल राजा के दृष्टांत से यम-नियम, व्रत-संयम का संदेश दिया गया है नियम तणा व्रत साध जेजे, शिवरामा तस जोवे रे, भोग अने उपभोग तणा जे, नियमव्रत आराधे रे । श्री वंकचल तणि परि ते नर, सरग तणा सुपसाधे रे, विनय करी गुरु पाय नमीजे, राजऋद्धि सुख लीजे रे। रचनाकाल-संवत सतरे छप्पने गायो, श्री वंकचूल नरेसो रे, सुंदर मंदिर मति बंदिर, श्री संघ तणे आदेसो रे। इसमें भी कवि ने अपने को शांतिविमल का सहोदर बताया है, यथा तेह तणे राजे जयवंता, श्री शांतिविमल कविराया रे, तास सहोदर इण परसंगे, केशरविमल गुणभाया रे । इससे साफ ज्ञात होता है कि कवि शांतिविमल का भाई था पर यह अनिश्चित है कि शांतिविमल उसके गुरु थे या गुरुभाई ? क्षमा प्रमोद-आप रत्नभ्रमसूरि के शिष्य थे। इनकी रचना निगोद विचारगीत (४८ कड़ी) सत्यपुर या साँचौर में पूर्ण हुई थी। इसका मंगलाचरण निम्नवत् है - १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कविओ भाग ५ पृ० १३४-१३५ न० सं० । २. भाग ५ पृ० १३७ (न० सं०)। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgd
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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