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________________ मगुर्जर हिन्दो जैन साहित्य का बृहद् इतिहास स्थान में रहकर हिन्दी में रचनाएँ करते रहे यह ऐतिहासिक महत्व की बात है। यह तत्कालीन काव्यभाषा ब्रज जिसमें षटभाषाओं का मेल था और जो मरुगुर्जर के मेल में थी, का दूरव्यापी प्रभाव व्यक्त करती है। कोतिविजय-- इनकी एक रचना 'गोड़ी प्रभु गीत' (११ कड़ी सं० १७६६ वैशाख) का पता चला है। इसका रचनाकाल कवि ने इस प्रकार लिखा है सतरइ सइ छासठ साखइ, तवन रच्यउं वैशाखइ, गोड़ी पास तणा गुण गाया, सफल थई मुझ काया । कीरतिविजय इण परि बोलइ, प्रभु जी नै कोइ न तोलइ। इसका आरम्भ प्रभुमिलन-स्मरण से हुआ है, यथा आज दिवस मुझ सफल जु फलीयो सुपने प्रभु जी मीलिया ।' कोतिसागर सूरि शिष्य -इस अज्ञान कवि ने 'भीमजी चौपई' सं. १७४२ चैत्र शुक्ल १५ पूजापुर में पूर्ण किया। यह ऐतिहासिक रास संग्रह भाग १ में प्रकाशित है। इसके आदि में सरस्वती की वन्दना है सरस वचन द्यो सरसति, प्रणमी वीनवं माय, अविरलमुझ मति आपजो करजो अ सुपसीय । चतुर छयल पण्डित पुरस, तस मन अधिक सुहाय । बुधि अकलि आविअ फलि, सांभलता सुखथाय । जाण होसे ते जाणसे अवर न जाणे भोय, काव्य गीत गुण उरें, मूढ न आगे हेज । अर्थात् काव्यरस का आनन्द सहृदय ज्ञानी पुरुष ही उठा सकते हैं न कि अरसिक-अज्ञानी । इसमें भीमसाह की कथा है, यथा भिमसाह भोगी भरजे अछे इणि संसार, तेह तणां गुण वरणवू सांभलजो नरनार । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ४६६ प्र० सं० और भाग ५ पृ० २५८ न० सं० । २. वही, भाग २ पृ० ३६३ (प्र०सं०) और भाग ५ पृ० ४०-४१(न० सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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