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________________ उपसंहार ६२३ पुरानी हिन्दी में लगातार साहित्य सृजन करते रहे। इनमें से अधिकतर कवि संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश के अच्छे ज्ञाता थे किन्तु उनके मन में किसी विशेष भाषा के प्रति भतिक्ति मोह नहीं था। वे अधिकतर "पुरानी हिन्दी या मरुगुर्जर अर्थात् लोक भाषा में ही साहित्य रचना करते रहे और प्रान्तवाद के झगड़े में कभी नहीं पड़े। हिन्दी क्षेत्र के महाकवि केशवदास को 'भाखा' में काव्य रचने से झिझक हो रही थी और लिखा 'भाखा बोलि न जानही जिनके कुल के दास' उस कुल में केशवदास मतिमन्द हुआ जिसने भाखा काव्य की रचना की । पर जैनकवि और सन्त जैसे मुनि रामसिंह आदि ने १०-११वीं शती से ही पुरानी हिन्दी में लिखना शुरू किया और १९वीं शती तक लगातार उसी में रचनायें करते रहे। इन लोगों का हिन्दी प्रेम श्लाघ्य है । दिगम्बर सम्प्रदाय की भाषा तो अधिकतर हिन्दी ही रही है और सकलकोति, ब्रह्मजिनदास, आदि ने पचासों रचनायें हिन्दी में की हैं। जैन साधुओं का बिहार क्षेत्र अधिकतर गुजरात, राजस्थान, पश्चिमोत्तर प्रदेश, बिहार आदि हिन्दी भाषी क्षेत्र ही रहे हैं, इसलिए हिन्दी में लिखना, बोलना इनके लिए सुगम और स्वाभाविक भी था। गुजरात और राजस्थान का व्यापारी वर्ग समस्त भारत में फैला है। इन्हें अन्तन्तिीय भाषा के रूप में अपना कारोबार अधिकतर हिन्दी में करने की आवश्यकता पड़ती है इसलिए भी श्रेष्ठियों और श्रावकों को लक्ष्य करके लिखा गया साहित्य हिन्दी में ही लिखा जाना ज्यादा उपयोगी था। जैन साहित्य में सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, साहित्यिक और ऐतिहासिक रचनाओं के साथ-साथ लोक आख्यानक काव्यों का विशाल भण्डार सम्मिलित है। प्रायः समस्त जैन काव्य लोक गीतों, देशियों और ढालों में आबद्ध होने के कारण अत्यन्त लोकाग्रही है. साथ ही उन्होंने जिन चरित्रों और कथानकों पर आधारित काव्य रचनायें की हैं वे भी लोकप्रसिद्ध और लोक प्रिय हैं जैसे रामायण की विविध कथाओं तथा चरित्रों पर आधारित सीताराम चौपाई, सीता आलोयणा, लवांकुश छप्पय और हनुमन्त कथा, महाभारत पर आधारित पाण्डवपुराण, द्रौपदी चौपाई आदि। जैन तीर्थङ्करों, गणधरों और अन्य महापुरुषों श्रेष्ठी-श्रावकों के उदात्त चरित्रों पर आधारित रचनायें जैसे जगडू चरित्र, वस्तुपाल तेजपालरास, महावीर, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, शांतिनाथ कल्याणक, स्तवन आदि अनेकानेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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