SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 627
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६०८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रिसहनाह प्रणमों जिणंद, प्रसन्न चित्त होइ आणंद, प्रणमु अजित पणासइ पाप, दुखदालिद्र भय हरइ ताप ।' ऊदर रासो (गाथा ६५ सं० १६८० के पश्चात्) यह कवि खरतरगच्छीय प्रतीत होता है। इसने गणेशवंदना भी की है, यथा-- शुडाला उमयासुतन मुख दन्तूसल मेक कहै जिमतौ तूठ कहां, उदर रासो अक । रचनाकाल--संवत सोल अशी औ समै उदर हुआ अनेक, - मारण कजिन हुइ मिनी, हुऔ न अहरु अक । २ इसकी भाषा पर राजस्थानी का प्रभाव अधिक है। सरस्वति अथवा 'भारती' अथवा 'शारदा छंद' (४४ कड़ी, सं०१६८४, आशो सुद १५, गुरुवार) आदि सकल सिद्धि दातारं, पार्श्व नत्वा स्तवाम्यहं, वरदां शारदा देवी, सुख सौभाग्य कारिणीं। रचनाकाल--संवत चन्दकला अति उज्जल, सायर सिद्धि आसो सुदि निर्मल, पनिम सूरु गुरुवारि उदार, भगवति छन्द रच्यो जयकार । जैसा कि इस कृति के नाम से ही स्पष्ट है, इसमें सरस्वती की वंदना की गई है, जैसे-- सारद नाम जपो जग जाणं, सारद नाम गाउ सुविहाणं, . सारद आयई बुद्धि विनाणं, सारद नामई कोडि कल्याणं ।' मनोहर माधव विलास अथवा 'माधवानल' (१९९ कड़ी, सं० १६८९ ___ से पूर्व) १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ९८४-८५ (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० २१३ (द्वितीय संस्करण) २. वही भाग ३ पृ० ९८९-९० (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ. २३३ (द्वितीय संस्करण) ३. वही भाग ३ पृ० १०१५-१६ (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० २५९ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy