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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का वृहद् इतिहास जेहनइ मलराज मानीइ सवि काजि, जयवल्लभ गुरु राजीइ । चौद विद्या निधि भोगवइ राजरिधि,
गुणनिधि गुरुअडि गाजीउ ।' 'धन्ना शालिभद्र रास' (रंगवी संघवी का पुत्र)
यह रचना कदाचित ऋषभदास की हो। रचनाकाल--संवत सोल चउवीसासार, आसो सूद ७ आदितवार,
रंगवी संघवी नो सुत ज बोलि,
अह सरलोक मेरुनितोलि । जैन गुर्जर कविओ भाग ११० २४१ पर ऋषभदास के पिता सांगण संघवी का उल्लेख है। संभव है कि यहाँ सांगण के स्थान पर 'सगवी' शब्द पाठ दोष या लिपि दोष से आ गया हो और समय १६२४ न होकर २०४४ =८० अर्थात् १६८० होतो यह रचना ऋषभदास की हो सकती है। सीता प्रबन्ध--(शीलविषयक) ३४९ कड़ी, सं० १६२८ रणथंभौर । इसका 'आदि' इस प्रकार है
सकल मनोरथ सिधवर, प्रणमीय श्री वर्धमान,
सील तणां गुण वर्णवउं, पहुवी प्रसिद्ध प्रमाण । इसमें शील का महत्व दर्शाया गया है, यथा
सील प्रभावि अग्नि टली, थापइ निरमल नीर;
सीता जिम प्रभावि हुयउ, कहिसुउ ते वर धीर । सीताराम की जिनदीक्षा के सम्बन्ध में कवि लिखता है--
तव ते राम नि सीता बेय, वैरागि जिन दृख्या लेय,
जप तप संयम पालिउ, खरउ रामि कर्मक्षय कर्यउ । रचनाकाल--संवत सोल अठवीसा वर्षे,
गढ़ रणथंभर अतिहि जगीसइ । १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ६७६-६७७ (प्रथम संस्करण) और __भाग २ पृ० ४२ (द्वितीय संस्करण) २. वही भाग २ पृ० १३९ (द्वितीय संस्करण).
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