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________________ ७८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अपभ्रश से आ० भा० भाषाओं के विकास का विवेचन करते हुए डॉ० नामवर सिंह ने लिखा है, अपभ्रंश का ध्वनि विचार प्राकृत से प्रभावित था किन्तु उसका व्याकरण प्राकृत प्रभाव से मुक्त होकर लोक बोलियों के सहारे भारतीय आर्यभाषा के विकास की नूतन संभावनायें प्रकट कर रहा था।' आ० हेमचन्द्र के आधार पर वे यह मानते हैं कि अपभ्रंश में देशी बोलियों का मिश्रण हआ। हो सकता है कि इन्हीं देशी बोलियों से ही आर्य भाषाओं का विकास हुआ हो क्योंकि साहित्यिक परिनिष्ठित भाषा से लोकभाषाओं का उदय नहीं होता बल्कि उनका स्वाभाविक विकास अवरुद्ध होता है। डॉ० रामविलास शर्मा का कथन है कि अपभ्रंश को हिन्दी, गुजराती और राजस्थानी की जननी मानना उचित नहीं है. क्योंकि भारत की आ० आ० भाषाओं के व्याकरण रूप उसमें नहीं मिलते हैं। वे पहले लिख चके हैं कि 'भाषाओं के बारे में जितनी भी सामग्री प्राप्त है उससे यही सिद्ध होता है कि बोली के आधार पर परिनिष्ठित भाषा का विकास होता है, परिनिष्ठित भाषा से बोलियाँ नहीं उत्पन्न होतीं, दिल्ली की खड़ी बोली के आधार पर हिन्दी विकसित हई, लंदन की बोली के आधार पर अंग्रेजी और मास्को की बोली के आधार पर रूसी भाषा विकसित हुई। सारांश यह कि अपभ्रंश भाषा में हमें मरुगुर्जर या पुरानी हिन्दी के रूप यत्र-तत्र मिल सकते हैं किन्तु इसी आधार पर उसे आ० भा० आ० भाषाओं की जननी नहीं कह सकते । इसी प्रकार परिनिष्ठित प्राकृतों से अपभ्रश की उत्पत्ति मानना भी संगत नहीं है क्योंकि उसका कृत्रिम रूप ही हमें उपलब्ध है । डॉ० चाटुा ने लिखा है 'वास्तव में हमें उपलब्ध उनका रूप वैयाकरणों (तथा पश्चात् के प्राकृत लेखकों) द्वारा शौरसेनी, मागधी, महाराष्ट्री, पैशाची आदि किस प्रकार की प्रादेशिक बोलियाँ होनी चाहिए, इस दृष्टि से कल्पित किया हुआ है ।' अब विचारणीय है कि किसी कल्पित भाषा के आधार पर उसके बाद की किसी भाषा का जन्म कैसे हो सकता है। जिस प्राकृत का प्रयोग महावीर ने किया होगा वह मागधी या अर्धमागधी होना चाहिए जो उनके प्रचार-क्षेत्र की जन-भाषायें थीं। लेकिन परिनिष्ठित अपभ्रश का मूलाधार पश्चिमी शौरसेनी (गुर्जरी) या महा १. डॉ० नामवर सिंह 'हिन्दी के विकास में अपभ्रश का योग' २. डॉ० राग विलास शर्मा, भाषा और समाज पृ० ३६६ ३. वही, पृ० १५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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