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मरु-गुर्जर की निरुक्ति "चर्चरी' और 'कालस्वरूपकुलक' में प्रथम स्पष्ट मरुगुर्जर की रचना लगती है, अतः इसका वर्णन यथास्थान वहीं किया जायेगा। कालस्वरूपकुलक को उपदेशकुलक भी कहा जाता है। इसमें क्रिया से सम्बन्धित पांच-छहः छंद हैं, गुरु की महिमा का वर्णन है और इसीलिए सब मिलाकर इसे कुलक की संज्ञा दी गई है। इसमें सद्गुरु की उपमा गो दुग्ध और कुगुरु की आक दुग्ध से दी गई है। इनके उपदेश रसायन की परम्परा में परवर्ती रचनायें बुद्धिरास, जीवदयारास आदि उल्लेखनीय हैं। भरतेश्वर बाहुबलि रास आदि १३ वीं शताब्दी की रास रचनाओं का विवरण यथास्थान आगे दिया जायेगा क्योंकि वे मरुगुर्जर की रचनायें हैं।
आपके पिता वाछिग हुंबड वंशीय थे और माता का नाम बाहड़ देवी था। आपका जन्म गुजरात के घोलका नगर में सं० ११३२ में हआ था। आपका दीक्षा नाम सोमचन्द्र था, सं० ११६९ में आप जिनदत्तसूरि के नाम से आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए थे। आप बड़े विद्वान् और प्रतिभाशाली आचार्य हुए। कविवर समयसुन्दर ने आपके व्यक्तित्व पर रचनायें की हैं। आपका स्वर्गवास सं० १२११ में हुआ। आपकी रचनायें 'अपभ्रंश काव्यत्रयी' में प्रकाशित हो चुकी हैं। ___इस समय की कुछ ऐसी रचनायें भी हैं जिनका कुछ अंश अपभ्रंश भाषा में है और कुछ मरुगुर्जर में है। सं० ११६० में रचित वर्द्धमान सूरि की रचना ऋषभचरित, देवचन्द्र कृत शान्तिनाथचरित और लक्ष्मणगणि कृत सुपासनाहचरित्र में अपभ्रंश के पर्याप्त अंश पाये जाते हैं। शुद्ध मुक्तक या स्फुट रचनाकारों से पूर्व कुछ उन कवियों का भी उल्लेख किया जायेगा जिन्होंने मुक्तक के साथ छोटे-छोटे कथा काव्य भी लिखे हैं। इनमें साधारण
और देवचन्द्र का नाम विशेष उल्लेखनीय है। ___ साधारण-आपने सं० ११२३ में विलासवइकहा की रचना की। आपने अनेक स्तुति, स्तोत्र, स्तवन आदि लिखे हैं। बाद में आपका नाम सिद्धसेन सूरि पड़ा। इस कथा की प्रति जैसलमेर भंडार में सुरक्षित है। यह रचना अहमदाबाद के समीप धुंधु का ग्राम में हुई। इसमें ११ संधियां हैं। यह हरिभद्रसूरिकृत समराइच्चकहा के आधार पर लिखी गई है और कथानक रूढ़ियों के अध्ययन की दृष्टि से बड़ी महत्त्वपूर्ण है। आप १. आ० जिनदत्त की तीनों रचनाओं को पं० लालचन्द भगवानदास गान्धी ने सम्पादित करके विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना के साथ गायकवाड़ ओरियन्टल सीरीज में प्रकाशित कराया है।
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