SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 626
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६०९ मरु-गुर्जर जैन गद्य साहित्य श्री देसाई ने समर्थ गद्यकारों का यथासम्भव विवरण दिया है, उनकी रचनाओं का नामोल्लेख किया है किन्तु संभवतः पुस्तक के विस्तारमय से प्रायः उदाहरण नहीं दिया है। श्री दिवेटिया ने ऐसी रचनाओं के कुछ उद्धरण दिए हैं। उनमें से कुछ अवतरणों को इस दृष्टि से यहाँ अवतरित किया जा रहा है कि पाठकों को इनसे तत्कालीन गद्यभाषा और शैली का अनुभव हो सकेगा। ये रचनायें बालावबोध न होकर मौलिक ग्रन्थों के अनुवाद रूप में हैं अतः अधिक समर्थ गद्यशैली के उदाहरण हैं। सर्वप्रथम भुवनदीपक के अनुवाद [सं० १५५७ ] की कुछ पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं : 'हवइ धातु तणूं स्वरूप कहीशइ । जु पृच्छक उपमानातणी पृच्छा करि जु जु शुकचन्द्र पांचम् स्थानकदेखइ तु कहिवं । पुत्रजन्म हुशइ। अथवा देखइ तु पुत्र नथी । ग्या दीहाडा तणं फल बोलीशि ।। इस भाषा का विश्लेषण करके श्री दिवेटिया ने लिखा है कि यह आधुनिक गुजराती से पूर्व की भाषा (अर्थात् मरु-गुर्जर) है। दूसरा उदाहरण 'स्वप्नाध्याय' के अनुवाद (सं० १५८२) से दिया जा रहा है, यथा : 'प्रासाद माहि जमि समुद्रमाहि तरि तु गुलामनि कुलि जन्म हुइ तुपण राजा हुइ । नाव्ये चढ़ी अनि चालि तु जे कोइ गमातरि गीउ हुइ ते आवीऊतावल ए विचार ।'२ अन्त में सं० १५७१ में लिखित 'अंबडकथा' का एक अवतरण देकर यह स्मरण कराना चाहता हूँ कि जैन लेखकों द्वारा १६वीं शताब्दी तक पद्य और गद्य में मरु-गुर्जर भाषा का प्रयोग किया जाता रहा, उनकी भाषा में प्रान्तीय विभेद नही पाया जाता, अतः समस्त जैन साहित्य चाहे राजस्थान, गुजरात या अन्य किसी आसपास के स्थान में लिखा गया हो वह मरु गुर्जर भाषा का साहित्य है, यथा 'हुँ करबक । माहरुपिता अंबड जन्मलगइ दरिद्री निर्धन धननइ कीधइ सर्वत्र भमई । मन्त्र यन्त्र ओषध ते धमनादि घणंइ करइ ण प काइंधन न पामई। जातु जातु धनगिरि पर्वतिं श्री गोरख योगिनी समीप गिउ ।' १. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ३, खंड २ पृ० १५८७ 2. Shri N. B. Divatia-Gujarati Language and Literature Vol. II, Page 46 49 3. Ibid. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy