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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यह रचना संघपति धनराज के आग्रह पर की गई थी।
रंगरत्नोपाध्याय-आपने सं० १५८२ में 'रूपकमाला बाला०' लिखा । इसके मूल लेखक श्री पुण्यनन्दि थे । रूपकमाला मरुगुर्जर भाषा में लिखी ३२ पद्यों की एक महत्त्वपूर्ण रचना है जिसपर संस्कृत भाषा में टीकायें लिखी गई हैं। श्री रंगरत्न ने यह टीका मरुगुर्जर गद्य में की है। इसके अलावा सुप्रसिद्ध कवि समयसुन्दर ने भी इस पर सं० १६६३ में संस्कृत भाषा में चूर्णी लिखी है।
राजशील-आप खरतरगच्छीय साधुहर्ष के शिष्य थे। आप उत्तम कवि और सक्षम गद्यकार थे। आपने 'विक्रमचरित चौपई', हरिबल चौपइ आदि कई पद्यबद्ध रचनायें की हैं जिनका उल्लेख पद्यखंड में किया जा चुका है। गद्य में आपकी प्रसिद्ध रचना 'सिन्दूरप्रकरण बालावबोध' प्राप्त है।'
राजहंस आपने दशवकालिक बालावबोध और 'प्रवचन सार' नामक गद्य रचनायें प्रवाहपूर्ण मरुगुर्जर भाषा में प्रस्तुत की हैं।
विद्याकोति- आपने सं० १५०५ में हिसारदुर्ग में 'जीवप्रबोधप्रकरण भाषा' नामक गद्य रचना की। अभयचन्द्रगणि द्वारा लिखित इसकी प्रति प्राप्त है।
विशालराज-आप तपागच्छ के प्रसिद्ध साधु मुनिसुन्दरसूरि के शिष्य थे । आपने सं० १५०५ के आसपास 'गौतमपृच्छा बाला' की रचना की। आपकी चर्चा पहले मुनि सुन्दरसूरि के प्रसंग में की जा चुकी है।
शिवसुन्दर-आपने सं० १५६९ में खींवसर नामक स्थान में 'गौतमपृच्छा बालावबोध' लिखा। गौतमपृच्छा महत्वपूर्ण रचना है, अतः उसपर कई बालावबोध लिखे गये हैं। लुकटमतनिर्लोढनरास (सं० १५९५) के लेखक श्री शिवसुन्दर की चर्चा पद्यखंड में की गई है। प्रस्तुत गौतमपृच्छा के लेखक शिवसुन्दर 'लुकटमतनिर्लोढनरास' के लेखक शिवसुन्दर एक ही व्यक्ति हो सकते हैं, क्योंकि दोनों का रचनाकाल प्रायः समान ही है। १. अगरचन्द नाहटा, राजस्थान का जैन साहित्य-पृ० २२९ २. वही पृ० २२९ ३. वही ४. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ३, पृ० १५८० ५. वही पृ० १५०० और राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २२९
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