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________________ मरु-गुर्जर जैन गद्य साहित्य कीर्तिसूरि, रत्नशेखरसूरि आदि सभी उत्तम लेखक थे और इन्होंने प्रचुर साहित्य रचा है। हेमहंसगणि-प्राचीन गुजराती गद्यसंदर्भ में आपकी रचना 'नमस्कार बालावबोध' संकलित है जिसका रचनाकाल सं० १५०० बताया गया है। इसलिए इनके गद्य का विवरण उदाहरण भी इसी के साथ दिया जा रहा है । 'भरतक्षेत्रि पोत्तनपुर नगर, तिहां सुगुप्त नामिई व्यवहारिउ श्रावक, तेहनइ श्रीमती नामिइ बेटी धर्मवति छइ । एक बार को एक मिथ्यात्वी श्रेष्ठिनउ बेटउ श्रीमतीनउं रूप देषी व्यामोहिउ । परणिवा वांछइ। पिता कन्हलि मंगावइ । पिता मिथ्यात्वी भणी दिइ नहीं। पछइ कपट श्रावक हुई श्रीमतीनउं पाणिग्रहण कीधउं । आपणइ घरि लेइ गिउ ।'1 ___ मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने हेमहंसगणि की गणना १६वीं शताब्दी में की है और आपके बालावबोध का रचनाकाल सं० १५०१ बताया है । प्राचीनगुजरातीगद्यसंदर्भ के सम्पादक मुनि जिनविजय ने इसका रचनाकाल सं० १५०० स्वीकार किया है जो उचित है। इस रचना में लेखक ने 'नमो सिद्धाणं', नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं और नमो सवत्साहूणं महामंत्र की व्याख्या की है जैसे, नमो अरिहंताणं का अर्थ समझाते हुए आप लिखते हैं :- अरिहंत जे हे रागद्वेष कषायादिक अंतरंग अरिषइरी हणिया छइ । ते श्री अरिहंत चउवीस अतिशय, पांत्रीस वाणीगुणे करी सहित समवसरणि बइठा विहरमाण छइ। तेहं हउं नमो कहीइ माहरउ नमस्कार हओ। आपकी भाषा विषय के प्रतिपादन में सक्षम और सामान्य जनों के लिए सुबोध थी। १५वीं शताब्दी के इन ज्ञात गद्यकारों के अलावा कुछ अज्ञात लेखकों की रचनायें भी प्राप्त हैं जैसे 'शीलोपदेशमाला बालावबोध इत्यादि । १५वीं शताब्दी के अन्त तक आते-आते मरुगुर्जर गद्यसाहित्य ने सोमसुन्दरसूरि आदि समर्थ गद्यकारों के मार्गदर्शन द्वारा सफलतापूर्वक अपने विकासपथ का एक चरण पूर्ण किया और १६वीं शताब्दी में प्रवेश किया। १. प्राचीन गुजराती गद्य सन्दर्भ-पृ० १६३ २. वही पृ० १६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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