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मरु-गुजर जैन साहित्य
५६३ अज्ञात कविकृत '१८ नातरां संबंध' (२५ गाथा) सं० १५६७ से पूर्व की कृति है। इसमें जंबू स्वामी का चरित्र चर्चित है । इसका प्रथम छन्द निम्नांकित है :
'मथुरापुरि नगरिवंश, कांबेर वेशाउइरे, जंब सरनां तास घरे, दिवस दस थवारी
पइय संचारी रयण विभागि मूकया जिमणां तारे।' इसका अन्तिम छन्द इस प्रकार है :
'इसउ अनभव जांणी चरित जंबु सामि,
विरत संसार माहि मुगति मांगउ ।१५।' अज्ञात कवि कृत 'नलदवदंती (नल राय) रास ६९ कड़ी की रचना है। इसमें नलदमयन्ती की प्रसिद्ध कथा जैन दृष्टि से संक्षेप में वर्णित है। इसका प्रथम छंद देखिये :
'सरसति सामिणि सुगुरु पाय, हियडइ समरेवि, करजोड़ी सासण देवि, अंबिक पणमेवि । नलदवदंती तणउ रास भावई पभणेवउ,
एकमना थइ भविय लोय, विगतंई निसुणेवउ ।' इसकी अन्तिम पंक्तियाँ निम्नांकित है :
'पढइ पढावइ जे सांभलइ, अष्ट महासिद्धि तेह घरि फलइ,
जे भणइसिइ नित नरनारि, नवइनिधि ते घरि वारि ।६९। अज्ञात कवि कृत 'बार भावना' नामक ९४ कड़ी की कृति सं० १५९५ से पूर्व की लिखी हुई प्राप्त है किन्तु विवरण अप्राप्त है । इसका कवि सुबुद्ध मालूम पड़ता है, वह कहता है :
भाषा अनेक भमीउ घj, वीतकनू सिउं सभारण उ,
भावित चारित्र लहिउं दुर्लभ, द्रव्यत हिइ प्रभु म करविलंब । अज्ञातकवि कृत 'वारवत चौ०' (३३८ गाथा) की रचना सं० १५३४ आसाढ़ शुदी १५ पीपरवाड़ा में हुई। १. श्री देसाई-जै० गु० कवि, भा० ३, पृ० ५०३ २. वही
पृ० ५३५ ३. वही
प० ६१९ ४. वही
पृ० ४९१
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