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________________ ४० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास बल पर पौराणिक प्रसंगों, ज्योतिष, नक्षत्र विद्या और काव्यशास्त्र आदि का ययावसर प्रयोग किया है। जसोहरचरिउ ( यशोधरचरित ) की रचना पुष्पदन्त ने अपने समकालीन सोमदेव कृत यशस्तिलकचम्प (सं० १०१६ ) के आधार पर किया है। यह चार संधियों की रचना है। इस विषय पर संस्कृत, प्राकृत में अनेक जैन कवियों ने कई रचनायें की हैं जिनमें वादिराजकृत यशोधरचरित्र, सोमदेवकृत यशस्तिल कचम्पू. माणिक्यसूरिकृत यशोधरचरित्र आदि उल्लेखनीय हैं। यशोधर उज्जयिनी का राजकुमार था जो अपनी रानी के दुराचरण के कारण विलासमय जीवन से विरक्त हो गया। इसमें उसके अनेक भवों की कथा कर्म विपाक के अनुसार दिखाई गई है। आगे उसके पुत्र जसहर तथा उसकी पत्नी चन्द्रमति के भवभ्रमण की कथा कही गई है। अवन्ति का वर्णन करता हुआ कवि कहता है : 'गलकल केकारहि हंसहि मोरहि मंडिय जेत्थ सुहाइमहि । जहिं चुमुचुमंति केयार कीरवर कमल सालि सुरहिय समीर ।' (जसहर चरित पृ० १६) पुष्पदन्त की भाषा में मुहावरों का भी अच्छा प्रयोग मिलता है। परम्परित उपमानों के आधार पर रानी के सौन्दर्य का वर्णन करता हुआ कवि जिन शब्दों की योजना करता है उससे अनुप्रास का सौन्दर्य तथा 'ण' की आवृत्ति से एक झंकृति उत्पन्न होती है यथा :-- "धण कसण केस दीहर णयणा, सुललिय तणु सुअकर ससि वयणा । णं सिय णव जुव्वण घण थणा, कलहंस कमल कोमल चलणा।'' __इसमें नयन, तन, बैन को नाहक णयणा, वयणा और तण बनाया गया है। कवि को वैसे संस्कृत शब्दों से परहेज नहीं मालम पड़ता और वह केश, दीर्घ, सुललित, यौवन, कलहंस, कमल, कोमल आदि का प्रयोग करता है। धवल-आपके पिता का नाम सूर और माता का नाम सूल्ला था। ये भी ब्राह्मण वंश में उत्पन्न हए थे, किन्तु बाद में जैन हो गये थे। इनका १. डा० हरिवंश कोछड़, 'अपभ्रंशसाहित्य' पृ० १०५ पर उद्धृत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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