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________________ ३४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्रारम्भ हो गई थी। इसके चलते संस्कृत की सुप् तथा तिङ विभक्तियाँ प्राकृत में सरल हो गई। द्विवचन घिसते-घिसते मिट गया। परस्मैपद और आत्मनेपद का भेद मिटने लगा। उच्चारण सौकर्य (मुख सुख) के कारण वैदिक संस्कत की जटिल ध्वनियाँ प्राकत और आगे चलकर अपभ्रंश में और सरल हो गई। नपुसक लिंग का प्रयोग भी क्रमशः कम होने लगा। शब्दों के कई वैकल्पिक रूप प्रचलित हए जैसे पूत्र के लिए प्राकृत का आ वाला रूप पत्तो और दूसरी ओर अपभ्रश का उकार बहुल रूप पुत्त, पुत्तउ भी चलने लगा। कहीं पुत्र भी मिल जाता है। कुछ नई विभक्तियों का विकास भी हआ जिनमें पुरानी हिन्दी के विकास के बीज मिलते हैं जैसे करउ>करह>करह>करहो से हिन्दी एकवचन कर तथा बहुवचन करो रूप विकसित हुआ होगा। कर्मणि प्रयोगों में 'इज्ज' (गणिज्जइ) के साथ तिङ प्रत्यय जोड़ दिया जाता था। हि और हिं विभक्ति का प्रयोग प्रायः सभी कारकों में होने लगा था। ___ परसर्गों का उदय अपभ्रंश की निजी विशेषता बताई गई है । प्रमुख परसर्ग होन्त > होन्तउ>होन्ति > हिउ, के रअ, केर और तण आदि हैं। इनके साथ विद्वानों ने अपभ्रश की तीन विशेषतायें बताई हैं (१) कारक और क्रिया विभक्तियों की मंदता का उल्लेख पहले हो चुका है । (२) संस्कृत मल से भिन्न देशज और रूढ शब्दों का भाषा में प्रयोग की चर्चा भी कर दी गई है। तीसरी विशेषता भाषा सम्बन्धी न होकर काव्य सम्बन्धी है । अपभ्रंश में तुकबद्ध छंदों का प्रचलन हआ। भाषा के स्वरूप निर्धारण में इसका कुछ प्रभाव अवश्य पड़ा है। अपभ्रश साहित्य की प्रसिद्ध रचनाओं का संक्षिप्त विवरण विषय-वस्तु को स्पष्ट करने के लिए उपयोगी समझ कर आगे प्रस्तुत किया जा रहा है । ___ अपभ्रंश साहित्य की संक्षिप्त उद्धरणी अपभ्रंश जैन साहित्य-संस्कृत और प्राकृत भाषा में उत्कीर्ण अनेक शिलालेख उपलब्ध हो चुके हैं किन्तु अपभ्रंश में उत्कीर्ण शिलालेख दुर्लभ हैं। धारा से प्राप्त (बम्बई संग्रहालय में सुरक्षित) एकमात्र शिलालेख के अलावा आचार्य हजारी प्रमाद द्विवेदी ने हिन्दी साहित्य की भूमिका' में एक अन्य शिलालेख (१३वीं शताब्दी) की चर्चा की है जिसमें राघो रावल के वंशज किसी राजकुमार के सौन्दर्य का वर्णन है । अतः शिलालेखों द्वारा अपभ्रंश भाषा और साहित्य को समझने में अधिक सहायता नहीं मिलती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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