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________________ ४९२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यह रास छोटा होने पर भी महत्त्वपूर्ण है । श्री नाहटा ने इनके प्रगुरु का नाम पुजराज लिखा है। श्री भगवानदास तिवारी ने इसका रचनाकाल सं० १५७६ बताया है। रचनाकार ने रचनाकाल का उल्लेख नहीं किया है। इसकी भाषा पर गुजराती का प्रभाव अधिक है। उदाहरणार्थ इसके अन्त की कुछ पंक्तियाँ देखिये :'हिबइ श्रीपूज्य पासचंद तणउ सुपसाउं, सीस धरइ निजनिरमल भाउ । नयर जालोरह जगतउ हिवि, नेमि नमउ नितु बे करजोडि ।। स्वामी दुरित नइ कष्ट हरउ दूरि, वेगि मनोरथ महारा पूरि, आणस्यउं संजम आपियो हिवइ, वीनवइ इमि श्रीविजयदेवसूरि । इसमें नेमिनाथ के आदर्श चरित्र द्वारा शील का उच्चादर्श इंगित किया गया है। इसका विषय लोकप्रिय है और रचना सरस ढंग से सरल मरुगुर्जर भाषा में प्रस्तुत की गई है। अतः यह इतनी लोकप्रिय और बहुप्रचारित रही है कि इसकी पचासों प्रतियाँ विभिन्न भांडारों में प्राप्त हैं। ८० पद्यों का यह रास प्रकाशित है। आपकी एक लघुकृति 'उपदेशगीत' (१९ कड़ी) प्राप्त है। इसकी प्रारम्भिक पंक्ति इस प्रकार है : 'सुरतरुनीपरि दोहिलउरे, लाधउ नरभव सार ।' अंतिम पंक्ति देखिये : 'खिमा सहित तुह्मो तप करउ, इमि बोलइ रे विजयदेवसूरि ।' विद्याभूषण-आप भट्टारक विश्वसेन के शिष्य थे । आप सं० १६०० से पूर्व ही भट्टारक पद पर प्रतिष्ठित हो गये थे! आप संस्कृत और मरुगुर्जर भाषा के अच्छे विद्वान् एवं सुलेखक थे । मरुगुर्जर में आपने लक्ष्मणचौबीसी पद, द्वादशानुप्रेक्षा और भविष्यदत्तरास की रचना की है। संस्कृत में आपने बारहसैचौतीसोविधान लिखा है । इनकी मरुगुर्जर की रचनाओं में 'भविष्यदत्तरास' विशेष उल्लेखनीय है। इसमें भविष्यदत्त के रोमांचक जीवन का आदर्शरूप चित्रित है। इससे पूर्व इस चरित्र पर आधारित संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश में अनेक रचनायें हो चुकी हैं इससे पता लगता है कि यह चरित्र जैन जगत में बड़ा लोकप्रिय रहा है। यह कृति सोजत्रा नगर स्थित सुपार्श्वनाथ के मंदिर में सं० १६०० श्रावण सुदी पंचमी को पूर्ण हुई। १. श्री मो. ८० देसाई-जै० गु० क०-भाग १, पृ० १४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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