________________
१६
मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाषा ही है। श्री देसाई ने जै० गु० क० में गुर्जर साहित्य का काल विभाजन प्रमुख लेखकों के आधार पर सोमसुन्दर युग, हीरविजय युग और यशोविजय युग आदि नामों से किया है किन्तु यह निर्विवाद नहीं है। इस प्रसंग में एक उदाहरण पर्याप्त होगा। हीरविजय जी के समकालीन आचार्य जिनचन्द्र को खरतरगच्छीय युग प्रधान मानते हैं और उस काल के जैन साहित्य का नामकरण उनके नाम पर करना चाहें तो अनुचित नहीं है। इसी प्रकार अन्य भी कारण हैं। अतः कालक्रमानुसार ही इस पुस्तक में इतिहास का वर्णन किया गया है और उसी के आधार पर कालविभाजन स्वीकार किया गया है। __ मरु-गुर्जर के प्रति उदासीनता-हिन्दी के प्रसिद्ध समीक्षक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने प्रसिद्ध इतिहास ग्रंथ में इस साहित्य को उपदेशप्रधान मान कर छोड़ दिया, परन्तु इसमें कोरी उपदेशपरक रचनायें ही नहीं हैं बल्कि साहित्यिक सरसता भी भरपूर प्राप्त होती है। आ० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इसकी विशेषताओं का उल्लेख करते हुए लिखा है कि इस साहित्य को अनेक कारणों से साहित्य के इतिहास-ग्रन्थों में सम्मिलित किया जाना चाहिये; कोरा धर्मोपदेश समझ कर छोड़ नहीं देना चाहिये।
"धर्म वहाँ केवल कवि को प्रेरणा दे रहा है। जिस साहित्य में केवल धार्मिक उपदेश हो उससे वह साहित्य निश्चित रूप में भिन्न है जिसमें धर्म भावना प्रेरक शक्ति के रूप में काम कर रही हो और साथ ही जो हमारी सामान्य मनुष्यता को आन्दोलित, मथित और प्रभावित कर रही हो।" इस दृष्टि से मरु-गुर्जर जैन साहित्य धर्म भावना से प्रेरित होते हुए भी उत्तम काव्य है और इसे साहित्य के इतिहास-ग्रन्थों में सम्मानित स्थान मिलना चाहिये । धार्मिक प्रेरणा या आध्यात्मिक उपदेश होना काव्यत्व का बाधक नहीं समझा जाना चाहिए, अन्यथा हमारे साहित्य की विपूल सम्पदा चाहे वह स्वयंभू, पुष्पदन्त, धनपाल की हो या जायसी, सूर और तुलसी की हो, साहित्य के क्षेत्र से अलग कर दी जायेगी। इसलिए धार्मिक साहित्य होने मात्र से कोई रचना साहित्य-कोटि से पथक नहीं की जा सकती। लौकिक निजधरी कहानियों को आश्रय करके धर्मोपदेश देना इस देश की चिराचरित प्रथा है। यह न तो जैनों की निजी विशेषता है और न सूफियों की। मध्ययुग के साहित्य की प्रधान प्रेरणा धर्म साधना ही रही है और धर्म बुद्धि के कारण ही आज तक प्राचीन साहित्य सुरक्षित भी रह सका है। जैन साहित्य के सन्दर्भ में तो यह कथन शत प्रतिशत सही है। १. आ० हजारी प्रसाद द्विवेदी-हिन्दी साहित्य का आदिकाल पृ० ९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org