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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बहद् इतिहास श्री मो० द० देसाई ने हेमचन्द्र के सन्दर्भ में लिखा है कि उन्होंने अपनी वृत्ति में उदाहरणस्वरूप छंद-दोहा आदि देकर तत्कालीन साहित्य-भाषा का नमूना जीवित बचा रखने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। इन्हें अपभ्रंश का उदाहरण कहा जाता है किन्तु ते ते समयनी जुनी हिन्दी गुजराती ना ज छे ।'। इससे उस समय की पुरानी हिन्दी 'मरुगुर्जर, साहित्य के प्रचार-प्रसार का और मरु-गुर्जर भाषा के वास्तविक रूप का पता चलता है। श्री नाथूराम प्रेमी ने सप्तम हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अवसर पर जबलपुर में अपने भाषण के दौरान कहा था कि पुरानी हिन्दी, पश्चिमी अवहट्ट या जुनी गुजराती तो प्रान्तभेद से एक ही भाषा के अलग-अलग पर्यायवाची नाम हैं। इसलिए १५वीं-१६वीं शताब्दी तक का जैन साहित्य इन तीनों प्रान्तों का एक ही है। आगे चलकर श्वेताम्बरी साहित्य मुख्य रूप से राजस्थानी और गुजराती में तथा दिगम्बरी साहित्य हिन्दी में लिखा गया। दिगम्बर सम्प्रदाय में अधिकतर लेखक गहस्थ या श्रावक हैं जो अपने को नवीन रचना का अधिकारी नहीं मानते, अतः इनका अधिकांश साहित्य अनूदित है । मौलिक साहित्य की विपुल सामग्री श्वेताम्बर जैनाचार्यों द्वारा लिखित है। अन्त में राजस्थानी के प्रसिद्ध लेखक श्री अगरचन्द नाहटा का विचार उद्धत करके यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि 'मरु-गुर्जर शब्द का प्रयोग पुरानी हिन्दी, प्राचीन राजस्थानी और जुनी गुजराती के अर्थ में ही हुआ है। श्री नाहटा जी का मत है कि तत्कालीन राजस्थानी मालवा-गुजरात तक प्रचलित थी इसलिए उसे मरु-गुर्जर कहना अधिक उपयुक्त है। इसे ही पुरानी हिन्दी और जुनी गुजराती भी कहते हैं ।'3 १३वीं शताब्दी की रचनाओं की भाषा के सम्बन्ध में नाहटा जी ने लिखा है कि कुछ की भाषा अपभ्रश प्रभावित राजस्थानी है और कुछ की बोलचाल की राजस्थानी है। इनमें से कुछ राजस्थान के अलावा गुजरात में रची गई है, परन्तु दोनों स्थानों में रची गई रचनाओं में भाषा का कुछ अन्तर नहीं है।' १. श्री मो० द० देसाई - जैन गुर्जर क० भाग १ १० १०३ २. श्री नाथूराम प्रेमी, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास ३. श्री अगरचन्द नाहटा, राजस्थानी साहित्य की गौरवपूर्ण परम्परा पृ० १८-१९ ४. श्री अगरचन्द नाहटा, राजस्थानी साहित्य का आदिकाल परम्परा पृ० १९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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