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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास स्थानी है, अंशतः ही सत्य और स्वीकार्य है। इतना तो शत-प्रतिशत सही है कि दोनों का उद्गम स्रोत एक है किन्तु वह स्रोत पश्चिमी राजस्थानी है इससे सभी विद्वान् सहमत नहीं हैं बल्कि दोनों को पश्चिमी शौरसेनी या महाराष्ट्री अपभ्रंश से विकसित बताते हैं । ___ डॉ० एल० पी० टेस्सीतोरी भी पुरानी पश्चिमी राजस्थानी और पुरानी हिन्दी में निकट सम्बन्ध स्वीकार करते हैं क्योंकि वे दोनों का मूल स्रोत शौरसेनी को मानते हैं । शौरसेनी प्राकृत से शौरसेनी अपभ्रंश और इससे एक ओर हिन्दी की बोलियां-ब्रजभाषा, खड़ी बोली आदि तथा दूसरी ओर उसके एक प्रादेशिक रूप नागर या महाराष्ट्री अपभ्रंश से गुजराती और पश्चिमी राजस्थानी का विकास हुआ है। इससे जाहिर है कि राजस्थानी और हिन्दी का मूलस्रोत भी एक ही है । प्रायः अधिकतर साहित्येतिहास के ग्रंथों में राजस्थानी को हिन्दी के साथ ही गिना जाता रहा है । राजस्थानी, हिन्दी और गुर्जर की इसी एकरूपता के कारण इनकी प्राचीन रचनाओं को पुरानी हिन्दी, जुनी-गुजराती या मरु-गुर्जर नाम दिया गया है। ___आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने लिखा है कि १५वीं शताब्दी तक हिन्दी, राजस्थानी और गुजराती जैसा विभाजन नहीं था। उस समय की भाषा को पुरानी हिन्दी ही कहना उचित है। श्री मो० द० देसाई ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'मरु-गुर्जर कविओ' में लिखा है “जुनी हिन्दी, जुनी गुजराती, जुनी राजस्थानी शब्द कृत्रिम और भेदबुद्धि को बढ़ाने वाले हैं। कविता की भाषा इस क्षेत्र की प्रायः एक ही रही है। जिस तरह नानक से लेकर दक्षिण के हरिदास की भाषा कभी ब्रजभाषा कहलाती थी उसी प्रकार अपभ्रंश के पश्चात् की साहित्य-भाषा को पूरानी हिन्दी या जूनी गुजराती कहा गया। मीरा की भाषा को गुजराती, हिन्दी और मारवाड़ी तीनों कहा जाता है। यदि छापेखानों का प्रचार, प्रान्तीयता का अतिरिक्त मोह और मुस्लिमों द्वारा फारसी अक्षरों के थोपने का आग्रह न होता तो हिन्दी स्वाभाविक रूप से समस्त देश की भाषा बन चुकी होती।'4 १. डॉ० एल० पी० टेस्सीतोरी 'पुरानी राजस्थानी' प० ७ २. हिन्दी साहित्य का बृहद् इतिहास भाग ३ पृ० ४११ (ना० प्र० सभा०) ३. आ० विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, हिन्दी साहित्य का अतीत भाग १, पृ० ७९ ४. श्री मो० द० देसाई 'मरु-गुर्जर कविओ' भाग १ १० १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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