________________
(११) (नवांगीवृत्तिकार) ११०, जिनवल्ल मसूरि १११, आ० दिनदत्त सूरि ११२,. तत्कालीन राजनीतिक स्थिति ११५, साहित्यक गतिविधि ११७, मरुगुर्जर जैन साहित्य की कतिपय विशिष्टतायें ११९, मरु-गुर्जर जैन साहित्य का विवरण (सं० १००१-१३००) : अभयदेवसूरि १२०, अमरप्रभसूरि १२०, आसिगु (श्रावक आसिग) १२०, श्रावक जगड़ १२२, जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) १२४, जयमंगलसूरि १२५, जयदेवगणि १२५, देल्हड़ १२५, धर्म १२५,नेमिचन्द्र भण्डारी १२८, पृथ्वीचन्द्र १२९, पाल्हण १२९, पुण्यसागर १३१, भत्तउ १३२, यशःकीर्ति (प्रथम) १३२, रत्नप्रभ या रत्नसिंह सूरि १३३, शाहरयण १३३, श्रावक लखण (लक्ष्मण) १३५, पण्डित लाख १३६, श्रावक लखमसी १३७, वरदत्त १३७, वज्रसेनसूरि १३७, वादिदेव सूरि १३८, विजयसेनसूरि १३९, वीरप्रभ १४१, शालिभद्र या सालिभद्र सूरि १४२, सिरिमा महत्तरा १४५, सुमतिगणि १४५, सुप्रभाचार्य १४६, सोमप्रभ १४६, हरिभद्रसूरि १४७, हरिदेव १४८, १३ वीं शताब्दी के अज्ञात कवि १४९।
अध्याय ३–मरु-गुर्जर जैन साहित्य सं० १३०१-१४००
राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थिति १५३, धार्मिक स्थिति १५५,. अभयतिलक गणि १५७, अमरप्रभसूरि १५८, आनन्दतिलक १५९ अम्बदेवसूरि १६१, उदयकरण १६४, उदयधर्म १६५, गुणाकरसूरि १६७, चारित्रगणि १६८, छल्हु १६९, जयदेवमुनि १७०, जयधर्म १७०, 'दादा' जिनकुशलसूरि १७१, जिनपद्मसूरि १७२, जिनप्रभसूरि १७५, देवचन्द्रसूरि १७९, धर्मकलश १७९, धर्मसूरि १८१, मन्त्री धारीसिंह १८१, पद्म या पउम १८२, प्रज्ञातिलक १८४, फेरु ठक्कुर १८६, महेश्वरसूरि १८७, मेरुतुङ्ग १८७, मोदमन्दिर १८९, मण्डलिक १८९, रल्ह (राजसिंह) १९०, मुनि राजतिलक १९२, राजकीर्ति १९३, राजवल्लभ १९३,रामभद्र १९३, श्रावक लखमसी १९४, लाखम (लक्ष्मणदेव) १९४, लक्ष्मीतिलक उपाध्याय १९५, वरित्तग १९६, विनय चन्द्रसूरि १९८, वीरप्रभ १९९, श्रीधर २००, शान्तिभद्र २००, शान्तिसूरि २०१, सहजसान २०१, सारमूर्ति २०२,. सुधाकलश २०३, सोममूर्ति २०३, सोलणु २०५, हेमभूषणगणि २०६, अज्ञात कवि कृत रचनायें २०६ ।
अध्याय ४-मरु-गुर्जर जैन साहित्य (१५ वीं शताब्दी)
१५ वीं शती के मरु-गुर्जर जैन साहित्य की पीठिका : राजनैतिक पृष्ठभूमि २१९, सांस्कृतिक पीठिका २२२, साहित्यिक पीठिका २२३,.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org