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________________ मरु-गुर्जर की निरुक्ति १०१ नागिन द्वारा गड़े धन की रखवाली करना कितना सुन्दर और परिचित उदाहरण है। किन्तु इसका अन्त नारी के रूप का लोभ छोड़ने में ही दिखाया गया है। केवलज्ञान और आनन्द की स्थिति में जब आत्मा स्थित हो जाती है , वही शान्तरस की चरम परिणति है। __हिन्दी के रासो काव्यों में युद्ध-वीर का प्रेरक प्रायः शृंगार रहा है किन्तु जैन काव्यों में यह बात नहीं है । मुनि कनकामर के करकंडुचरिउ में वीर रस का उत्तम परिपाक हुआ है किन्तु यहाँ युद्ध किसी सुन्दरी के लिए नहीं हुआ , वीररस के उपरान्त कन्याओं के समर्पण एवं विवाह के फलस्वरूप कवि ने शृङ्गार रस के लिए भी पर्याप्त अवसर निकाल लिया है किन्तु वीर रस को प्रमुखता दी गई है। वीररस का भी पर्यवसान शान्त रस में ही हआ है किन्तु अपने स्थान पर वीररस का अच्छा परिपाक हुआ है। युद्ध प्रारम्भ होने पर शस्त्र संपात की तीव्रता का अनुभव छोटे छंदों में वीर रस के परिपाक में कितना सहायक है; देखिये निम्न पंक्तियाँ"ता हयई तूराई, भुवणयल पूराई । वज्जति वज्जाइं सज्जति सण्णाई। आणाए घडियाइं, पर बलई भिडिया, कुंताइ मज्जंति, कुजरइं गजहि ।' इसी प्रकार सभी रसों को यथास्थान अनुपातानुसार अवसर प्राप्त हुआ है किन्तु सबकी चरम परिणति निर्वेद और शान्त में ही हुई है। सिद्धों और सन्तों के काव्य में उपलब्ध शान्त रस गौण है। वहाँ भक्ति का महासुख ही प्रधान है । अतः शान्त रस की रसराज के रूप में स्थापना का निर्विवाद श्रेय जैन साहित्य को ही है । नेमि और राजुल की कथा पर प्रणीत प्रभूत जैन साहित्य में शृङ्गार का स्फीत वर्णन होने के बावजूद अंगीरस शान्त ही है। सभी रसों का वर्णन करने के बाद शान्त रस का वर्णन करते हुए थूलिभद्र बारहमासे में कवि विनयचन्द्र कहते हैं फागुन शान्त रसइ रमई, आणी नव नव भावो जी। अनुभव अतुल वसंत मां, परिमल सहज समावो जी । इत कवियों की कविता में एक तरफ सांसारिक रागद्वेष से विरक्ति, दूसरी तरफ प्रभु चरणों में परम शान्ति की प्रतीति अभिव्यक्त हुई है, इस प्रकार शान्त के अतिरिक्त जैन काव्य में भक्ति का भी पर्याप्त निरूपण किया गया है। अतः जैन भक्ति पर भी इसी के साथ विचार कर लेना समीचीन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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