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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सांवलीसंवाद, कृपणनारीसंवाद आदि । संदेशकाव्य या दूतकाव्य की परम्परा भी अति प्राचीन है। इसमें मेघदूत अग्रगण्य है । अपभ्रंश में संदेश रासक वैसी ही मार्मिक रचना है। जैन रचनाओं में नेमिदूत, शुकसंदेश आदि प्राप्त हैं । कहीं-कहीं भ्रमर, शुक, काग आदि को संबोधित करके भी संदेशकाव्य लिखे गये हैं। हिन्दी में सूर का भ्रमरगीत बहुत प्रसिद्ध है। उपासनामूलक काव्य रूपों में कलश, अभिषेक, प्रभाती, साँझी, बधावा, गहूंली, स्तवन, स्तोत्र, भजन, आरती, चैत्यवन्दन, चैत्यपरिपाटी, तीर्थमाला, पट्टावली, गुणावली, झूला, हिंडोला आदि बीसों काव्य रूप प्रचलित हैं जिनका विषय उनके नामों से ही स्पष्ट हो जाता है । काव्यात्मक रूपों में माला, मालिका, कुलक, प्रकाश, लतामंजरी, रसायन, रत्नाकर, कोश, समुच्चय और सूत्र आदि नाम भी प्रचलित हैं। इतर रूगों में सलोका, दूहा, गीति, हम चड़ी, हीच, ढालिया आदि जैन साहित्य के प्रसिद्ध काव्य रूप हैं।' गाने के तर्ज को ढाल या देसी कहा गया है। मरुगुर्जर साहित्य में रचना के खण्ड या इकाई को एक ढाल या तर्ज में लिवते हैं । इसी प्रकार ढाल में रचित रचना को ढालिया, चार तों वाली को चौढालिया, छहढालिया आदि भी कहा जाता है। यह लोकप्रिय रूप जैन मरुगर्जर काव्य में सर्वत्र पाया जाता है । ___ हमचड़ी या हीच नृत्ययुक्त लोकगीतों का एक रूप है जो ताली बजाकर घूमते हुए गाया जाता है। इसके अलावा लावनी, गरबा, होली, विहुली, फुलड़ा आदि लोकगीतों के तर्ज पर भी बड़ी संख्या में रचनायें मिलती हैं। ___ गजल -मरुगुर्जर में गजल नामक फारसी की काव्यविधा भी बाद में प्रचलित हो गयी थी। मरुगुर्जर साहित्य में नगर वर्णनात्मक गजलों की एक लंबी परम्परा है। इनकी भाषा प्रायः हिन्दी है। यह परम्परा - १७वी, १८वीं शताब्दी में अधिक लोकप्रिय हुई । सर्वप्रथम हमें जटमल कृत लाहौरगजल और खेनाकृत चितौड़रीगजल का पता चलता है। बाद में प्राप्त कुछ गजलों का विवरण आगे दिया गया है । उद्धरण आदि यथास्थान दिये जायेंगे। १. डॉ. चन्द्रकांत मेहता मध्यकाल ना साहित्य प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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