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मर गुर्जर की निरुक्ति
है । गणपति कृत माधवानलकामकंदला में इस प्रकार की रचनायें मिलती हैं।
अन्तरालाप--प्रहेलिका की एक स्वतंत्र शैली है। इसमें प्रश्न और उत्तर दोनों रहते हैं। हीराणदे रचित विद्याविलास पवाड़ा में अन्तलोपिकायें मिलती हैं।
मुकरो - अपभ्रंश की वार्ता एवं प्रबन्ध शीर्षक रचनाओं में मुकरी यत्रतत्र मिल जाती है पर इस पर कोई स्वतंत्र ग्रंथ संभवतः नहीं लिखा गया । अमीर खुसरो अपनी मुकरियों के लिए प्रसिद्ध हैं। हिन्दी में भारतेन्दु ने बड़ी चुटीली व्यंग्यात्मक मुकरियाँ लिखी हैं। __प्रहेलिका--इसमें किसी व्यक्ति को संशय में डालकर उसके बुद्धि की परीक्षा ली जाती है। जैन ग्रन्थों में हीयाली शब्द प्रहेलिका या बुझौवल के अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है। अर्थगूढ़ता के कारण इसे गूढ़ा भी कहते हैं । राजस्थान में इसे 'आड़ी' कहा जाता है। इसका प्रचलन काव्य रूप की तरह १६वीं शताब्दी से पूर्व सम्भवतः नहीं मिलता। देवपालकृत हीयालियों को प्राचीन माना जाता है। यह ज्यादा प्रचलित काव्य रूप नहीं है । समयसुन्दर ने नलदमयन्तीचौपाई में इसकी चर्चा की है।
___ संख्यामूलक काव्य रूपों में बड़ी विविधता पायी जाती है। सप्तशती, शतक जैसे गाथासप्तशती, अमरूशतक, भर्तृहरिशतक आदि प्राचीन रचनायें इसी कोटि की हैं। इनमें हजारा, त्रिंशतक, पंचासिका, चौरासी, बहत्तरी, छप्पनी, बावनी, पचासा आदि उल्लेखनीय हैं। प्रबोधपंचासिका, शुकबहोत्तरी, सूडाबहोत्तरी, प्रबोधबावनी, मातृकाबावनी के अलावा अनेक चौबीसी और बीसी भी लिखी गयी हैं। इसी प्रकार सप्तक, अष्टक भी मिलते हैं।
उपदेश व शिक्षामूलक काव्य रूपों में मातृका, कक्क, ककहरा, अखरावट, अक्षर क्रम पर आधारित काव्य रूप हैं जैसे जगडूकृत सम्यकत्वमाइ च उपई, जिनपद्म कृत शालिभद्रकक्क आदि । संवाद और संदेश मूलक काव्य रूपों में संवाद मूलतः जैन काव्य रूप है जो विवाद और झगड़ों
आदि कई अन्य नामों से भी प्रचलित है जैसे जिह्वादंतसंवाद, गोरीJain Education International For Private & Personal Use Only
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